Lucknow News: उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा विभाग में अनुशासन और पारदर्शिता लाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। शासन ने बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों, शिक्षकों और कर्मचारियों को अपने मूल तैनाती स्थल पर लौटने के लिए 10 दिन का सख्त अल्टीमेटम जारी किया है। आदेश का पालन न करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
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क्यों जारी हुआ यह आदेश
शासन स्तर पर समीक्षा के दौरान पाया गया कि कई अधिकारी और कर्मचारी अपने मनमाने तरीके से विभागीय कार्यालयों या स्कूलों में वर्षों से संबद्ध बने हुए थे। कई मामलों में जुगाड़ या व्यक्तिगत प्रभाव के आधार पर शिक्षकों को मनपसंद स्थानों पर तैनात कर दिया गया था। यह व्यवस्था शासन को अनुचित लगी। इसलिए अब सभी को उनके मूल पदस्थापन स्थल पर लौटने के निर्देश दिए गए हैं।
अपर मुख्य सचिव का सख्त रुख
बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने स्पष्ट कहा कि,
“कई अधिकारियों ने बिना शासन की अनुमति के शिक्षकों और कर्मचारियों को अपनी पसंद के कार्यालयों में जोड़ दिया है। यह अनुशासनहीनता है और इसे तुरंत रोका जाएगा।”
उन्होंने यह भी आदेश दिया कि भविष्य में बिना शासन अनुमति के कोई भी संबद्धता मान्य नहीं होगी।साथ ही, महानिदेशक स्कूल शिक्षा को 10 दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेजने के निर्देश दिए गए हैं।
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10 दिन में लौटना होगा मूल कार्यस्थल पर
अब सभी शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को 10 दिनों के अंदर अपने मूल तैनाती स्थल पर पहुंचना अनिवार्य होगा। यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी शासन के आदेश की अवहेलना करता पाया गया, तो उसके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी कर्मचारी अपने असली कार्यस्थल पर रहकर अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन करें। इससे न केवल कार्यालयों में अनुशासन बढ़ेगा, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा।
पुराने मामलों ने बढ़ाई सरकार की चिंता
यह फैसला अचानक नहीं लिया गया है। बीते महीनों में कई ऐसे मामले सामने आए, जहां कर्मचारियों को ‘संबद्धता” के नाम पर अनुचित रूप से कार्यालयों में रखा गया था। पुराने आदेशों के बावजूद यह प्रवृत्ति समाप्त नहीं हुई। हाल ही में जांच में कई जिलों में ऐसे उदाहरण सामने आए जिनमें शिक्षक और अधिकारी अपने मूल पद पर उपस्थित नहीं थे। इस पृष्ठभूमि में शासन ने अब कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया है, ताकि शिक्षा विभाग में अनुशासन और पारदर्शिता को पुनः स्थापित किया जा सके।
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शासन का मकसद: पारदर्शिता और जवाबदेही
शासन के अनुसार, यह निर्देश सिर्फ एक प्रशासनिक आदेश नहीं है, बल्कि एक संरचनात्मक सुधार की दिशा में बड़ा कदम है। शिक्षकों और कर्मचारियों को अब वहीँ रहना होगा जहाँ उनकी नियुक्ति मूल रूप से हुई थी। इससे जवाबदेही तय होगी, और सरकारी विद्यालयों में शिक्षण कार्य की निरंतरता भी बनी रहेगी।विभागीय सूत्रों के मुताबिक, इस निर्णय से स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित होगी, जिससे बच्चों की पढ़ाई पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
भविष्य की प्रक्रिया क्या होगी
आगामी दिनों में महानिदेशक स्कूल शिक्षा की ओर से सभी जिलों से रिपोर्ट एकत्र की जाएगी। इस रिपोर्ट में बताया जाएगा कि किन कर्मचारियों को मनमाने ढंग से संबद्ध किया गया था और कितनों को उनके मूल कार्यस्थल पर भेजा गया है। रिपोर्ट के आधार पर शासन आगे की कार्रवाई तय करेगा। इसके अलावा, अब से किसी भी अधिकारी को बिना शासन अनुमति के किसी कर्मचारी की संबद्धता बदलने का अधिकार नहीं होगा।
शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में बड़ा कदम
उत्तर प्रदेश सरकार का यह आदेश शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन, जवाबदेही और पारदर्शिता लाने की दिशा में ऐतिहासिक माना जा रहा है।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी शिक्षक अपनी ड्यूटी सही स्थान पर निभाएँ और सरकारी स्कूलों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले।राज्य सरकार का यह कदम उस लंबे समय से चली आ रही अव्यवस्था को समाप्त करने की कोशिश है, जिसने विभाग की छवि को प्रभावित किया था।
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राजनीतिक संदर्भ: अनुशासन बनाम मनमानी की राजनीति
यूपी शासन के इस सख्त कदम को कुछ राजनीतिक विश्लेषक प्रशासनिक सुधारों की नई लहर के रूप में देख रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार पहले भी सरकारी विभागों में जवाबदेही और पारदर्शिता पर जोर देती रही है। यह आदेश उसी नीति की निरंतरता है।
10 दिन के भीतर शिक्षकों और कर्मचारियों को अपने मूल कार्यस्थल पर लौटना अनिवार्य कर दिया गया है। अनुपालन न करने वालों पर कार्रवाई होगी। इससे न केवल शिक्षा विभाग में व्यवस्था सुधरेगी, बल्कि जनता के प्रति जिम्मेदारी निभाने की भावना भी और मजबूत होगी। उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है —
“अनुशासन और पारदर्शिता से ही शिक्षा व्यवस्था मजबूत होगी।”
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