Sanjay Singh Srinagar: यह घटना लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। गुरुवार को आम आदमी पार्टी (AAP) ने आरोप लगाया कि उसके वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को श्रीनगर के डोडा में अवैध रूप से हिरासत में ले लिया गया। उनके साथ पार्टी के अन्य नेता, जिनमें दिल्ली के पूर्व मंत्री इमरान हुसैन भी शामिल हैं, को रोका गया।
संजय सिंह ने मीडिय से कहा कि उन्हें प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही रोक दिया गया। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस एएपी के जम्मू-कश्मीर के एकमात्र विधायक मेहराज मलिक की गिरफ्तारी के विरोध में रखी गई थी। मलिक को हाल ही में पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत गिरफ्तार किया गया था।
संजय सिंह ने कहा, “पुलिस वाले गांधी जी के तीन बंदरों की तरह खड़े हैं, जब हम सवाल पूछते हैं तो कोई जवाब नहीं देता। हमें क्यों नज़रबंद किया गया, यह उनके ‘बॉस’ से पूछना चाहिए। हमने धरना और प्रेस कॉन्फ्रेंस की पूरी जानकारी पहले ही दे दी थी, फिर भी ऐसा किया गया। जिस सरकारी गेस्ट हाउस में हमें रोका गया है, उसे पुलिस कैंप बना दिया गया है।”
संजय सिंह ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर भी पोस्ट कर लिखा, “तानाशाही चरम पर है। मैं इस समय श्रीनगर में हूं। अधिकारों के लिए आवाज उठाना और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना हमारा संवैधानिक अधिकार है। आज @MehrajMalikAAP की गिरफ्तारी के विरोध में प्रेस कॉन्फ्रेंस और धरना होना था, लेकिन सरकारी गेस्ट हाउस को पुलिस कैंप में बदल दिया गया। मुझे, @ImranHussaain और साथियों को बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है।”
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इस मामले पर एएपी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने पूछा कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला को संजय सिंह से मिलने क्यों नहीं दिया गया। केजरीवाल ने कहा, “लोकतंत्र की आवाज़ को दबाया जा रहा है, विपक्षी नेताओं को कैद किया जा रहा है।”
संजय सिंह के समर्थन में विपक्ष के अन्य नेता भी सामने आए। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने कहा, “संजय सिंह सांसद हैं, वरिष्ठ नेता हैं! उन्हें जम्मू-कश्मीर में नजरबंद करना तानाशाही की हद है। सब कुछ ठीक नहीं है। भाजपा को याद रखना चाहिए कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी कश्मीर में नजरबंद किया गया था।”
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राजद (RJD) के सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि बिना आरोप किसी जनप्रतिनिधि को गिरफ्तार करना कानून नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर हमला है।
यह प्रकरण बताता है कि विपक्षी नेताओं की आवाज़ को दबाने की कोशिशें किस हद तक बढ़ चुकी हैं। लोकतंत्र में असहमति व्यक्त करना और शांतिपूर्ण विरोध करना हर नागरिक और जनप्रतिनिधि का संवैधानिक अधिकार है। ऐसे कदम लोकतांत्रिक व्यवस्था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं। सरकार और प्रशासन से अपेक्षा की जाती है कि वे संवाद और पारदर्शिता के माध्यम से समस्याओं का समाधान करें, न कि विरोध को दबाने के लिए बल प्रयोग करें।
