Mauritius PM New Delhi: कांग्रेस के सियासी गलियारों में इन दिनों हलचल तेज़ है। दिल्ली के ताज पैलेस होटल में एक अहम मुलाक़ात हुई। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम से मुलाक़ात की। यह मुलाक़ात सिर्फ औपचारिक शिष्टाचार भर नहीं थी, बल्कि इसके पीछे कई परतें छिपी नज़र आईं। पुण्य प्रसून बाजपेयी की शैली में अगर देखें, तो तस्वीर के पीछे की कहानी ज़्यादा दिलचस्प है।
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मुलाक़ात का सियासी मायने
दिल्ली के राजनीतिक माहौल में यह मुलाक़ात उस समय हुई, जब संसद के अंदर और बाहर विपक्ष सत्तारूढ़ दल पर लगातार हमले कर रहा है। राहुल गांधी हाल के दिनों में लगातार अंतरराष्ट्रीय मुद्दों और पड़ोसी देशों के साथ भारत के रिश्तों पर सवाल उठाते रहे हैं। ऐसे में मॉरीशस के प्रधानमंत्री से उनकी यह भेंट केवल कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि रणनीतिक संदेश भी लगती है।

मॉरीशस और भारत – रिश्तों की डोर
भारत और मॉरीशस का रिश्ता सदियों पुराना है। वहां की आबादी का बड़ा हिस्सा भारतीय मूल का है। आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक सहयोग में भारत हमेशा से मॉरीशस का सबसे बड़ा साझेदार रहा है। सोनिया और राहुल गांधी की यह बैठक इस रिश्ते को नई दिशा देने की कोशिश के रूप में भी देखी जा सकती है। कांग्रेस यह दिखाना चाहती है कि विदेश नीति सिर्फ सरकार का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सर्वसम्मति का मुद्दा है।
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तस्वीर में छिपे संदेश
अक्सर कहा जाता है कि, “तस्वीरें बोलती हैं, बस सुनने वाला चाहिए।” इस मुलाक़ात की तस्वीरें भी यही कह रही थीं। सोनिया गांधी का संयमित अंदाज़, राहुल गांधी का सहज मुस्कान के साथ आत्मविश्वास और मॉरीशस के प्रधानमंत्री का सधे हुए कूटनीतिक भाव सब कुछ इशारा कर रहा था कि कांग्रेस अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को एक ज़िम्मेदार पार्टी के रूप में पेश करना चाहती है।
विपक्ष की रणनीति और कांग्रेस की चुनौती
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी विपक्ष के नेता बने हैं। अब उनके सामने दोहरी चुनौती है – संसद के भीतर सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने कद को मजबूत करना। इस मुलाक़ात से राहुल गांधी ने यह संकेत दिया कि वह सिर्फ घरेलू राजनीति तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि वैश्विक रिश्तों पर भी सक्रियता दिखाएंगे।
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मॉरीशस प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएं
नवीनचंद्र रामगुलाम भारत के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने के पक्षधर माने जाते हैं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, टेक्नोलॉजी और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भारत से मजबूत साझेदारी की उम्मीद जताई। मुलाक़ात के दौरान ये सारे विषय भी चर्चा में रहे। खास बात यह रही कि बैठक का माहौल बेहद आत्मीय था – किसी औपचारिक सम्मेलन जैसा नहीं, बल्कि एक अनौपचारिक संवाद जैसा।
कांग्रेस की छवि सुधारने की कवायद
पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस की छवि पर कई बार सवाल उठे हैं – चाहे नेतृत्व की क्षमता हो या संगठन की दिशा। राहुल गांधी अब उस छवि को बदलने की कोशिश में हैं। विदेशी नेताओं से मुलाक़ात कर वह यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस आज भी भारत की विदेश नीति में अहम भूमिका निभाने की योग्यता रखती है। सोनिया गांधी की मौजूदगी इस बात को और पुख्ता करती है कि पार्टी का नेतृत्व अब भी अनुभव और युवा सोच के मेल से काम करना चाहता है।
मीडिया और राजनीतिक प्रतिक्रिया
मीडिया ने इस बैठक को अलग-अलग नजरिए से देखा। कुछ ने इसे कांग्रेस की ‘सॉफ्ट डिप्लोमेसी’ कहा, तो कुछ ने राहुल गांधी की विदेश नीति में बढ़ती दिलचस्पी के रूप में। बीजेपी के कुछ नेताओं ने हल्की-फुल्की टिप्पणी भी की कि विपक्ष को घरेलू मुद्दों से ज़्यादा विदेश दौरों की चिंता है। लेकिन कांग्रेस समर्थकों ने इस पहल को सकारात्मक बताया।
तस्वीर के पीछे का अर्थ
निष्कर्ष निकालें, तो यह मुलाक़ात सिर्फ एक शिष्टाचार भेंट नहीं, बल्कि कांग्रेस के भीतर उभरती नई रणनीति का हिस्सा है। पार्टी समझ चुकी है कि राजनीति अब सिर्फ संसद तक सीमित नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी छवि गढ़ने की ज़रूरत है।
दिल्ली में हुई यह मुलाक़ात बताती है कि कांग्रेस अपने राजनीतिक एजेंडे को सिर्फ घरेलू बहसों तक सीमित नहीं रखना चाहती। सोनिया गांधी का अनुभव और राहुल गांधी का नया दृष्टिकोण – दोनों मिलकर कांग्रेस को नए रास्ते पर ले जाने की कोशिश में हैं। मॉरीशस जैसे छोटे लेकिन महत्वपूर्ण देश के प्रधानमंत्री से भेंट ने यह साफ़ कर दिया कि कांग्रेस अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के मोर्चे पर भी सक्रिय रहने का इरादा रखती है।
तस्वीरें कभी-कभी शब्दों से ज़्यादा कह देती हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और नवीनचंद्र रामगुलाम की यह तस्वीर भी यही बता रही थी कि भारतीय राजनीति में संवाद के रास्ते अभी खुले हैं, बस ज़रूरत है उन्हें सही दिशा देने की
