Taslima Akhtar : जम्मू-कश्मीर की मानवाधिकार कार्यकर्ता तस्लीमा अख्तर ने हाल ही में यूनाइटेड नेशंस में कश्मीर की आम जनता की मुश्किलें और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का असर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने रखा। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से कश्मीर में आतंकवाद ने लोगों की जिंदगी और उनकी सुरक्षा पर गहरा असर डाला।
तस्लीमा ने अपनी बचपन की यादें साझा करते हुए कहा कि वह केवल 11 साल की थीं, जब उनके पिता और बड़े भाई को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। उनके परिवार पर उस समय जो सदमा आया, वह उन्होंने कभी नहीं भूला। उन्होंने कहा कि यह केवल उनका परिवार ही नहीं बल्कि कश्मीर की हजारों आम जनता की कहानी है, जो आतंकवाद और हिंसा के कारण परेशान रही।

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पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का असर
तस्लीमा ने यूएन में बताया कि कश्मीर में आतंकवाद केवल सुरक्षा को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि लोगों के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आम जिंदगी पर भी असर डालता है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि कश्मीर की समस्या को समझें और आतंकवाद को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएं।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की ओर से समर्थित आतंकवादियों ने वर्षों तक कश्मीर की अमन-चैन को परेशान किया। स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई बाधित हुई, लोग घरों में डर के साए में जीने को मजबूर हुए। कश्मीर की महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी इस आतंकवाद के शिकार बने।
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बदलती कश्मीर की तस्वीर
तस्लीमा अख्तर ने कहा कि अब कश्मीर की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। भारत सरकार और सुरक्षा बलों के प्रयासों से कश्मीर में सुरक्षा और शांति स्थापित करने में मदद मिली है। उन्होंने बताया कि कश्मीर के लोग अब अपने सपनों और जिंदगी को सामान्य रूप से जीने की ओर बढ़ रहे हैं।

उन्होंने यूएन में यह भी जोर दिया कि कश्मीर की बदलती परिस्थितियों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को समझना चाहिए, ताकि सही जानकारी के आधार पर निर्णय लिए जा सकें। तस्लीमा ने कहा कि अब कश्मीर की युवा पीढ़ी अपने शिक्षा और करियर पर ध्यान दे रही है, और आतंकवाद के डर से मुक्त होकर अपने जीवन को आगे बढ़ा रही है।
तस्लीमा का संदेश
तस्लीमा अख्तर ने यूएन में कहा कि कश्मीर की आवाज विश्व समुदाय तक पहुँचना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देश को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराना चाहिए। उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि कश्मीर की जनता आतंकवाद और दहशत के बीच नहीं जी सकती।
तस्लीमा का मानना है कि शांति और विकास के बिना कश्मीर का भविष्य संभव नहीं। उन्होंने सभी देशों से आग्रह किया कि वे कश्मीर की सच्चाई और कश्मीरी लोगों के दर्द को समझें और आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाएं।
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तस्लीमा अख्तर की यह कोशिश कश्मीर की आवाज को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनके शब्दों में कश्मीर की पीड़ा, संघर्ष और बदलती स्थिति साफ झलकती है। उन्होंने यह संदेश भी दिया कि कश्मीर की जनता अब शांति और विकास की राह पर अग्रसर है और आतंकवाद से भयभीत नहीं है।
कश्मीर में बदलती परिस्थितियों, संघर्षों और शांति की ओर बढ़ते कदमों को तस्लीमा अख्तर ने अपनी सजीव और प्रभावशाली कहानी के माध्यम से दुनिया के सामने रखा। उनके प्रयासों से यह स्पष्ट होता है कि कश्मीर की असली कहानी और आवाज़ अब दुनिया तक पहुँच रही है।
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