Shyamlal Nishad Controversy: सुल्तानपुर में एक बार फिर धर्म और राजनीति का टकराव खुलकर सामने आया है। विजयदशमी के दिन आयोजित एक सामाजिक समरसता कार्यक्रम के मंच पर वह घटना घटी जिसने पूरे जिले की फिज़ा को गर्म कर दिया। बौद्ध धर्म से जुड़े राष्ट्रीय मोस्ट संगठन के अध्यक्ष श्यामलाल निषाद ने सार्वजनिक मंच से सनातन, जगद्गुरु रामभद्राचार्य और गेरुआ वस्त्रधारियों पर अभद्र टिप्पणी कर दी। कहानी यहीं खत्म नहीं होती — उनके इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और देखते ही देखते पूरे प्रदेश में हलचल मच गई।
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विवाद का मंच, और माइक छीनने वाला क्षण
2 अक्टूबर को विजयदशमी के अवसर पर कादीपुर तहसील के अमरेमऊ गांव में समरसता सामाजिक कार्यक्रम आयोजित था। मंच पर विभिन्न धर्मों के लोग बैठे थे, संवाद का उद्देश्य था — समरस समाज की बात। लेकिन मंच पर ही जब श्यामलाल निषाद ने हिन्दू धर्म, प्रवचन परंपरा और गेरुआ वस्त्रधारण करने वालों पर तंज कसा, तो माहौल बदल गया।
सनातन पर टिप्पणी, आस्था पर प्रहार
मंच पर मौजूद भाजपा विधायक राजेश गौतम ने तुरंत आपत्ति जताई। उन्होंने माइक छीन लिया और श्यामलाल को भरे मंच पर फटकार लगाई। वीडियो में यह पूरा वाकया साफ़ दिखाई देता है — विधायक का आक्रोश, श्यामलाल की हिचक और मंच पर छाई असहज चुप्पी।
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सोशल मीडिया ने खोली पोल
विवादित बयान का वीडियो कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर फैल गया। “गेरुआ पहनने वालों को प्रवचन नहीं, प्रपंच कहते हैं” जैसी बातें सुनते ही हिन्दू संगठनों में रोष फैल गया। कई सनातन प्रेमियों और साधु-संतों ने इसकी निंदा की।
यही वायरल वीडियो अब श्यामलाल निषाद के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आधार बना। करौंदीकला थाना में उनके खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने और अभद्र टिप्पणी करने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
भाजपा विधायक का सीधा संदेश
राजेश गौतम का कहना है — “हम किसी के धर्म का अपमान नहीं होने देंगे। समरसता का अर्थ दूसरों की आस्था को नीचा दिखाना नहीं होता।”
विधायक का यह बयान साफ़ संकेत देता है कि सत्ता पक्ष भी ऐसे बयानों को हल्के में नहीं ले रहा।
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धर्म बनाम विमर्श: एक पुरानी बहस
यह घटना केवल एक मुकदमे या बयान भर की नहीं है। यह उस बहस को फिर से सामने लाती है जो भारत के सामाजिक ताने-बाने में हमेशा से मौजूद रही है – धर्म और विमर्श के बीच की पतली रेखा।
जब कोई व्यक्ति “विचार” के नाम पर आस्था पर प्रहार करता है, तो समाज के भीतर विभाजन गहराता है।
पुण्य प्रसून वाजपेयी की शैली में कहें तो — “विचार अगर समरसता का हो, तो भाषा में मर्यादा जरूरी है; क्योंकि धर्म पर प्रहार, सिर्फ शब्दों का नहीं, समाज की संवेदना का अपराध बन जाता है।”
अब आगे क्या?
पुलिस जांच में जुट गई है। करौंदीकला थाने के प्रभारी ने बताया कि वीडियो और बयान दोनों की सत्यता की जांच की जा रही है। अगर आरोप सही पाए गए, तो श्यामलाल निषाद के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। वहीं, स्थानीय लोगों में यह चर्चा भी जोरों पर है कि क्या समरसता के नाम पर किसी की आस्था को चोट पहुंचाना सही है?
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समाज को जोड़ने का रास्ता, तोड़ने की भाषा क्यों?
धर्म की आलोचना संवाद का हिस्सा हो सकती है, लेकिन अपमान नहीं। सनातन केवल एक आस्था नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना है — और जब कोई उस चेतना को ललकारता है, तो समाज में आक्रोश उठना स्वाभाविक है।श्यामलाल निषाद के बयान ने जो आग लगाई है, अब उसे कानून की जांच और समाज की समझ ही ठंडा कर सकती है।
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