Ayodhya Uttar Pradesh: जैसे-जैसे दिवाली का त्योहार करीब आता है, अयोध्या के कुम्हार अपनी रोटियों, मिट्टी और रंगों से भगवान हनुमान की मूर्तियों को आकार देने में जुट गए हैं। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और शहर के कुम्हारों के लिए इस समय का आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व बेहद उच्च होता है।
कुम्हारों की तैयारी और मेहनत
अयोध्या के कुम्हार साल भर मिट्टी के बर्तनों और धार्मिक मूर्तियों का निर्माण करते हैं, लेकिन दिवाली के अवसर पर भगवान हनुमान की मूर्तियाँ बनाने की तैयारी सबसे खास होती है। इन मूर्तियों के निर्माण में निम्नलिखित कदम शामिल हैं।

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- मिट्टी का चयन: मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी का चयन बेहद सावधानी से किया जाता है। मिट्टी को पहले साफ किया जाता है, फिर उसे गूँथकर तैयार किया जाता है।
- मूर्तियों का ढांचा: सबसे पहले मूर्ति का ढांचा तैयार किया जाता है, जो आकार और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होता है।
- डिजाइन और आकार: भगवान हनुमान की मूर्तियों का आकार अलग-अलग होता है – कुछ छोटी मूर्तियाँ पूजा के लिए होती हैं, जबकि बड़ी मूर्तियाँ मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर स्थापित करने के लिए बनाई जाती हैं।
- सुखाना और रंगना: मूर्ति तैयार होने के बाद उसे प्राकृतिक धूप में सुखाया जाता है। उसके बाद परंपरागत रंगों और रंगीन पेंट से सजाया जाता है।
कुम्हार इस काम में महीनों की मेहनत और कला का प्रयोग करते हैं। हर मूर्ति में एक अलग प्रकार की भक्ति और शिल्प कौशल झलकता है।
दिवाली में हनुमान मूर्तियों की मांग
दिवाली का त्योहार भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन घरों, मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों में देवी-देवताओं की मूर्तियों की सजावट होती है। हनुमान की मूर्तियाँ विशेष रूप से लोकप्रिय हैं क्योंकि उन्हें शक्ति, साहस और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।

- व्यक्तिगत पूजा: कई परिवार अपनी पूजा स्थलों पर हनुमान की छोटी मूर्तियाँ रखते हैं।
- मंदिर और सार्वजनिक स्थल: बड़े मंदिर और धार्मिक संस्थान बड़ी मूर्तियाँ खरीदते हैं, जिन्हें दिवाली पर सजाया जाता है।
- उपहार के रूप में: हनुमान की मूर्तियाँ दिवाली के उपहार के रूप में भी लोकप्रिय हैं।
अयोध्या का कुम्हार उद्योग
अयोध्या का कुम्हार समुदाय दशकों से मिट्टी के बर्तन और मूर्तियाँ बनाने के लिए जाना जाता है। यह न केवल उनकी पारंपरिक कला का हिस्सा है बल्कि उनकी आजीविका का भी प्रमुख स्रोत है।
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- आर्थिक पहलू: दिवाली के समय कुम्हारों की बिक्री में भारी बढ़ोतरी होती है। छोटी मूर्तियाँ और रंग-बिरंगे बर्तन विशेष रूप से घरों में सजावट के लिए खरीदे जाते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: कुम्हार अपने कौशल और परंपरा के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कला अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
मूर्तियों में नवीनता और रचनात्मकता
हर साल कुम्हार नई तकनीक और डिज़ाइन के साथ मूर्तियाँ तैयार करते हैं। इस वर्ष भी उन्होंने हनुमान की मूर्तियों में नवीनता लाने के लिए कई तरह के प्रयोग किए हैं:
- रंगों का मिश्रण: पारंपरिक लाल और केसर रंग के अलावा हल्के नीले, हरे और सुनहरे रंगों का प्रयोग किया गया है।
- आभूषण और सजावट: मूर्तियों में छोटे-छोटे आभूषण और कपड़े की सजावट जोड़कर उन्हें और आकर्षक बनाया गया है।
- विभिन्न आकार और मुद्राएँ: कुछ मूर्तियों में हनुमान का गदा थामना, कुछ में भक्तों पर आश्रय देना और कुछ में आकाश की ओर उड़ान भरते रूप को दर्शाया गया है।
कुम्हारों के अनुभव
अयोध्या के कुम्हारों का कहना है कि दिवाली के लिए मूर्तियाँ बनाना उनके लिए सिर्फ व्यवसाय नहीं बल्कि भक्ति और परंपरा का हिस्सा है।
“हर मूर्ति में हमारी मेहनत और भक्ति होती है। जब लोग इन्हें पूजा के लिए खरीदते हैं, तो हमें संतोष और खुशी मिलती है।” – रामकृष्ण कुम्हार, अयोध्या
वे बताते हैं कि दिवाली से पहले तैयार होने वाली मूर्तियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है क्योंकि लोगों में धार्मिक और पारंपरिक चीजों के प्रति रुचि अधिक होती जा रही है।

पर्यावरण के अनुकूल निर्माण
अयोध्या के कुम्हार पारंपरिक मिट्टी का प्रयोग करते हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल है। प्लास्टिक या अन्य कृत्रिम सामग्री के बजाय प्राकृतिक मिट्टी, रंग और सजावट का उपयोग किया जाता है। इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित रहता है बल्कि मूर्तियों में प्राकृतिक सुंदरता और स्थायित्व भी मिलता है।
भविष्य की दिशा
कुम्हार इस परंपरा को भविष्य में और अधिक विस्तारित करने के लिए नई तकनीकों और डिज़ाइन प्रयोगों पर विचार कर रहे हैं। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर भी उनकी मूर्तियों को प्रदर्शित करने और बिक्री बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इससे न केवल उनकी कला को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
अयोध्या के कुम्हार दिवाली से पहले भगवान हनुमान की मूर्तियों का निर्माण एक शानदार उदाहरण है कि कैसे परंपरा, कला और भक्ति एक साथ मिलकर सांस्कृतिक और आर्थिक मूल्य प्रदान करते हैं। इन मूर्तियों के माध्यम से न केवल भक्त अपनी पूजा कर सकते हैं बल्कि कुम्हारों की कला और मेहनत की सराहना भी कर सकते हैं।
अयोध्या की गलियों में गूंजते रोटियों के हाथों की आवाज़ और रंग-बिरंगे हनुमान की मूर्तियां दिवाली की खुशियों को और बढ़ा देती हैं। यह परंपरा न केवल हमारी संस्कृति को जीवित रखती है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपने कला और भक्ति के मूल्यों से अवगत कराती है।
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