Dhirendra Shastri : उत्तराखंड के बागेश्वर धाम में इस बार का अक्षत महोत्सव एक बार फिर चर्चा का विषय बना। बागेश्वर के प्रमुख और जनता के प्रिय धर्माचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इस महोत्सव में सम्मिलित होकर अपने सशक्त और भावपूर्ण संदेशों से उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी उपस्थिति ने महोत्सव को न सिर्फ आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बना दिया।
धीरेंद्र शास्त्री ने अपने भाषण में कहा, “हम सत्य के पूजक हैं, किसी व्यक्ति के नहीं।” यह कथन आज के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में एक प्रहार की तरह प्रतीत हुआ। जैसे पुण्य प्रसून वाजपेयी की शैली में हम कह सकते हैं, ‘सत्य की राह पर चलना कभी भी किसी राजनीतिक गठबंधन या सत्ता के अधीन नहीं हो सकता।’
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राजनीति पर हल्का कटाक्ष: ममता बनर्जी की छवि पर सवाल
धीरेंद्र शास्त्री ने अपने संवाद में अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति के पथभ्रष्ट चेहरों पर कटाक्ष किया। जहां अन्य धर्मगुरु केवल धर्म और आध्यात्मिकता की बात करते हैं, वहीं शास्त्री जी ने उस लाइन को छू लिया, जो सीधे जनता के विवेक से जुड़ा है।
सांसद ममता बनर्जी पर उनकी टिप्पणी कुछ इस प्रकार प्रतीत हुई, “कुछ नेता केवल अपनी ही छवि चमकाने में लगे रहते हैं, जनता की भलाई उनके एजेंडे में नहीं आती।” पुण्य प्रसून वाजपेयी की शैली में कहें तो यह कटाक्ष सीधे सत्ता की उस मानसिकता पर था, जो ‘लोकहित’ को केवल नारे तक सीमित कर देती है। शास्त्री जी का यह अंदाज बहुत ही सूक्ष्म लेकिन प्रभावशाली था।
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धर्म और समाज का समन्वय
धीरेंद्र शास्त्री का संदेश केवल राजनीतिक आलोचना तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने समाज और धर्म के गहरे तालमेल पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “जब समाज अपने नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से दूर होता है, तब राजनीति भी भ्रमित हो जाती है।”
उन्होंने जनता से अपील की कि वे धर्म के नाम पर केवल उत्सव नहीं मनाएं, बल्कि अपने कर्तव्यों और नैतिक जिम्मेदारियों का पालन भी करें। उनके भाषण में एक संतुलित दृष्टिकोण दिखा—एक ओर आध्यात्मिक समर्पण, दूसरी ओर सामाजिक चेतना।
अक्षत महोत्सव: भक्तों की भीड़ और आयोजन का शानदार दृश्य
इस महोत्सव में भक्तों की भीड़ ने बागेश्वर धाम के गलियारों को पूरी तरह भर दिया। प्रत्येक दृश्य में भक्ति और श्रद्धा का मिश्रण देखने को मिला। धीरेंद्र शास्त्री ने भक्तों को सीधे संबोधित करते हुए कहा, “भक्ति केवल शब्दों में नहीं, कर्मों में दिखनी चाहिए।”
पुण्य प्रसून वाजपेयी की पत्रकारिता शैली में कहा जाए तो, यह दृश्य किसी बड़े राजनीतिक सभा से कम नहीं था। यहां केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि समाज को जागृत करने का एक सजीव मंच था।
कटाक्ष और संदेश का संतुलन
धीरेंद्र शास्त्री की खासियत यही है कि वे कटाक्ष और संदेश के बीच सटीक संतुलन बनाए रखते हैं। ममता बनर्जी जैसी राष्ट्रीय नेताओं की नीतियों पर हल्के-फुल्के तंज़ भी उन्होंने लगाए, लेकिन कभी भी उनका भाषण व्यक्तिगत हमला नहीं बनता।
यह वह शैली है, जिसमें जनता अपने मन में सवाल उठा सकती है, सत्ता पर विचार कर सकती है, और साथ ही धर्म और नैतिकता की ओर भी आकर्षित होती है। शास्त्री जी के शब्दों में वही शक्ति थी, जो पुण्य प्रसून वाजपेयी के संवादों में दिखाई देती थी—तथ्य पर आधारित, भावनाओं से जुड़ा, और समाज को सोचने पर मजबूर करने वाला।
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सत्य की राह पर चलना ही अंतिम लक्ष्य
अक्षत महोत्सव का यह आयोजन केवल भव्य और भक्ति पूर्ण नहीं रहा, बल्कि समाज और राजनीति पर एक गहरा संदेश भी छोड़ गया। धीरेंद्र शास्त्री ने स्पष्ट किया कि सत्ता, राजनीति और व्यक्तित्व की चमक से अधिक महत्वपूर्ण है सत्य, नैतिकता और समाज की भलाई।
उनकी इस शैली में निहित गंभीर संदेश यही है कि भले ही कुछ नेता केवल अपने नाम और पहचान के लिए राजनीति करते हों, जनता की जागरूकता और सत्य की पूजा अंततः समाज को सही दिशा दिखाएगी।
शास्त्री जी का यह दृष्टिकोण हमें याद दिलाता है—जहां शब्दों की शक्ति और सामाजिक जागरूकता का मेल होता है, और हल्का कटाक्ष भी गंभीर संदेश में बदल जाता है।
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