S Jaishankar UN speech: नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र (UN) की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विश्व मंच से एक कड़ा संदेश दिया। उन्होंने पाकिस्तान और चीन पर अप्रत्यक्ष निशाना साधते हुए कहा कि “एक स्थायी सुरक्षा परिषद सदस्य खुलेआम उस संगठन की रक्षा कर रहा है जिसने पहलगाम आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी।” जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद के पीड़ितों और अपराधियों को बराबर ठहराना न केवल अंतरराष्ट्रीय न्याय के साथ मज़ाक है, बल्कि यह बहुपक्षीयता (multilateralism) की विश्वसनीयता को भी कमजोर करता है।
🔹 पाकिस्तान-चीन पर सीधा हमला
विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि कुछ देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में “ईमानदारी की कमी” दिखा रहे हैं।
उन्होंने कहा —
“जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एक सदस्य खुलकर उस संगठन को बचाता है जिसने पहलगाम जैसे जघन्य आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली, तो यह बहुपक्षीयता की साख पर गहरा सवाल उठाता है।”
यह टिप्पणी चीन पर सीधा संकेत थी, जिसने कई बार भारत के प्रस्तावों को रोकते हुए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों से जुड़े आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध सूची में शामिल करने के प्रयासों को ब्लॉक किया है। वहीं, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने अपनी संसद में कहा था कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के बयान से “The Resistance Front (TRF)” का नाम हटवाया — वही संगठन जिसने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी।
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“संयुक्त राष्ट्र की निर्णय प्रक्रिया जड़ हो चुकी है”
जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की निर्णय प्रक्रिया आज की वैश्विक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती। उन्होंने कहा —
“संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली न तो उसके सदस्य देशों की आकांक्षाओं को दर्शाती है, न ही यह वैश्विक प्राथमिकताओं को संबोधित करती है। बहसें ध्रुवीकृत हो चुकी हैं और निर्णय प्रक्रिया जकड़ी हुई है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि किसी भी सार्थक सुधार को खुद “सुधार प्रक्रिया” का बहाना बनाकर रोका जा रहा है। अब आर्थिक संकट भी इसमें एक बड़ी चुनौती बन गया है।
“आतंकवाद पर ढिलाई बहुपक्षीयता की हार”
जयशंकर ने आतंकवाद के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी असफलता बताया। उन्होंने कहा कि जब “आतंकियों को खुलेआम बचाया जाता है”, तो यह न केवल न्याय के सिद्धांतों को चोट पहुंचाता है, बल्कि पूरी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
उन्होंने तीखे स्वर में कहा —
“यदि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का उद्देश्य केवल औपचारिकता बनकर रह गया है, तो विकास और सामाजिक-आर्थिक प्रगति की स्थिति और भी गंभीर है।”
“वैश्विक दक्षिण की पीड़ा को समझना जरूरी”
विदेश मंत्री ने कहा कि आज ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों की समस्याएं बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि 2030 तक के सतत विकास लक्ष्य (SDG Agenda) की प्रगति धीमी पड़ चुकी है।
“चाहे व्यापार प्रतिबंध हों, सप्लाई चेन पर निर्भरता हो या राजनीतिक वर्चस्व — विकासशील देशों को इन सबका सीधा नुकसान झेलना पड़ रहा है।”
🔹 “संयुक्त राष्ट्र का समर्थन आवश्यक, उम्मीद अभी बाकी है”
हालांकि जयशंकर ने आलोचना के साथ-साथ उम्मीद की बात भी की। उन्होंने कहा —
“इतनी बड़ी वर्षगांठ पर हम उम्मीद नहीं छोड़ सकते। चाहे जितनी कठिनाई हो, बहुपक्षीयता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता मजबूत रहनी चाहिए।”
भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक सहयोग की भावना का समर्थन किया है। जयशंकर ने कहा कि भारत शांति स्थापना अभियानों (peacekeeping operations) में अग्रणी रहा है और अपने सैनिकों के बलिदान के माध्यम से दुनिया को बेहतर बनाने में योगदान दिया है।
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🔹 ‘UN@80’ स्मारक डाक टिकट का विमोचन
कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री ने ‘UN@80’ की स्मृति में एक विशेष डाक टिकट जारी किया। यह डाक टिकट ‘MyGov’ पोर्टल पर आयोजित एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता के माध्यम से चुना गया था। जयशंकर ने बताया कि यह डाक टिकट “संघर्ष के दौर में शांति की आवश्यकता” का प्रतीक है।
उन्होंने कहा —
“आज भी दुनिया कई बड़े युद्धों का सामना कर रही है, जिनसे न केवल लाखों लोगों की जान जा रही है, बल्कि पूरी मानवता की स्थिरता प्रभावित हो रही है। विशेषकर ग्लोबल साउथ को खाद्य, ईंधन और उर्वरक संकट का सामना करना पड़ रहा है।”
एस. जयशंकर का यह संबोधन भारत की उस सशक्त कूटनीतिक नीति का प्रतिबिंब है, जो आतंकवाद पर शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाए हुए है और संयुक्त राष्ट्र से सुधार व जवाबदेही की मांग कर रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र को अस्वीकार नहीं करता, बल्कि चाहता है कि यह संस्था “21वीं सदी की वास्तविकताओं” के अनुरूप बने, ताकि दुनिया में शांति, न्याय और समानता की आवाज और बुलंद हो सके।
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