Thakur politics in Uttar Pradesh: कभी एक मंच पर न बैठने वाले दो चेहरे संगीत सोम और सुनील भराला अब फिर से एक चौपाल में दिखे। राजनीति में ये मुलाकात नहीं, बल्कि “मन मिलाप” का नया अध्याय बताया जा रहा है। मगर यूपी की जमीन पर जहां जात और जिद दोनों की राजनीति है, वहां दोस्ती भी सशर्त होती है तू मेरे साथ है, जब तक तीसरा बीच में नहीं आता। सोम और भराला, दोनों ही मेरठ-मुजफ्फरनगर की वही राजनीतिक मिट्टी से निकले हैं, जहां भाषणों से ज्यादा तासीर जुलूसों में दिखाई देती है। दोनों की राजनीति का आधारभूत सिद्धांत था ‘हम ठाकुर हैं, बाक़ी सब बाद में।’ लेकिन वक्त के साथ समीकरण बदले, और ये दोनों ठाकुर नेता एक-दूसरे के विरोधी खेमे में जा पहुंचे।
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‘36 का आंकड़ा’ और वो भी ठाकुर बनाम ठाकुर
राजनीति में 36 का आंकड़ा तब बनता है जब अहंकार, असर और अहम एक ही पंचायत में मिल जाएं। सोम और भराला के बीच यह टकराव भी कुछ ऐसा ही था। एक तरफ संगीत सोम “ठाकुर चौबीसी” में प्रभावशाली नाम, जो अपनी आक्रामक राष्ट्रवादी छवि से चर्चित हुए दूसरी तरफ सुनील भराला सधी हुई भाषा और संगठन के करीब माने जाने वाले नेता। दोनों की दूरी कभी इतनी थी कि प्रदेश की बैठकों में एक की मौजूदगी का मतलब दूसरे का न होना समझा जाता था। पर राजनीति में “कभी नहीं” भी ज्यादा दिन नहीं टिकता। और वही हुआ।

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दोस्ती की नई पटकथा ‘राजनीति की रील में रियल फ्रेंडशिप’
अब तस्वीर बदली है। दोनों फिर से साथ नजर आ रहे हैं। कहते हैं, यूपी की राजनीति में हाथ मिलाना कभी भी सच्चा नहीं होता, बस सामयिक होता है। लेकिन यहां मामला थोड़ा अलग है। कई महीनों की खींचतान और आपसी ‘ठाकुर विमर्श’ के बाद आखिरकार दोनों ने पुराने मतभेदों को “राजनीतिक धूल” बताकर झाड़ दिया। सोशल मीडिया पर साझा मंच की तस्वीरें आईं, और तुरंत ये संदेश गया “अब ठाकुर चौबीसी एकजुट है। लेकिन, जो लोग राजनीति के भीतर की बारीकियां जानते हैं, वे मुस्कराए ठाकुर चौबीसी में एकता कभी स्थायी नहीं, बस अगली मीटिंग तक रहती है।
बालियान फैक्टर: दोस्ती के बीच कांटा
जब सोम और भराला साथ आए, तो एक और नाम अचानक सुर्खियों में आया संजीव बालियान। बालियान, जो पश्चिमी यूपी की जाट राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरे हैं, उनका ‘36 का आंकड़ा’ अब संगीत सोम से है। कारण सीधा है। प्रभाव क्षेत्र का टकराव। जहां ठाकुर चौबीसी अपनी जातीय एकजुटता दिखाना चाहती है, वहीं बालियान का खेमाखास अपने ‘गठजोड़ समीकरण’ को बरकरार रखना चाहता है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सोम की नई “ठाकुर एकता” बालियान की जाट शक्ति पर जवाबी वार है। क्योंकि यूपी में ठाकुर और जाट, दोनों ही अपनी-अपनी ‘पंचायत राजनीति’ में खुद को नंबर वन मानते हैं।
ठाकुर चौबीसी राजनीति का ‘एलिट क्लब’
अब बात करें उस “ठाकुर चौबीसी” की, जिसमें संगीत सोम का नाम चलता है। ये सिर्फ ठाकुरों की सामाजिक संस्था नहीं, बल्कि राजनीतिक दबदबे का प्रतीक है। यहां सदस्यता चुनाव से नहीं, “प्रभाव से” मिलती है। हर सीट, हर पद, हर रणनीति — यहां “सम्मान” से ज्यादा “सम्मानित दिखना” मायने रखता है। सोम इस चौबीसी में एक समय सबसे ऊंची कुर्सी पर माने जाते थे। अब जब भराला उनके साथ हैं, तो चौबीसी में संदेश गया संगीत सोम की वापसी हो गई है। लेकिन राजनीति में वापसी का मतलब केवल एक है — अगली पारी की तैयारी।
‘ठाकुरों की दोस्ती, जाटों की दूरी’
यूपी की राजनीति में ये नया समीकरण किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। जहां ठाकुर नेता अब एकजुटता की बात कर रहे हैं, वहीं जाट नेता अपने गणित में व्यस्त हैं। राजनीति के इस ‘मैदान’ में जात ही असली खिलाड़ी है, बस कप्तान बार-बार बदलता रहता है। संगीत सोम और सुनील भराला की नई दोस्ती एक “राजनीतिक फोटो ऑप” भी हो सकती है,या फिर ठाकुर वोट बैंक की अगली पारी की भूमिका भी।लेकिन एक बात तय है संजीव बालियान से 36 का आंकड़ा अभी खत्म नहीं हुआ है।
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राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन नहीं, बस स्थायी महत्वाकांक्षा होती है
उत्तर प्रदेश की राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही “वोट शेयर” से तय होते हैं। आज जो साथ है, कल विपक्ष में खड़ा हो सकता है। सोम और भराला का मेल यही दिखाता है कि राजनीति में भावनाओं की नहीं, संभावनाओं की राजनीति चलती है। ठाकुर चौबीसी में भले तालियां बज रही हों, पर बालियान का मौन भी बहुत कुछ कह रहा है । “राजनीति में एकता की तस्वीर जितनी मुस्कुराती दिखती है, उतनी ही अंदर से खिंची हुई होती है।”
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