प्रस्तावना: दो राज्यों में नाम, एक कानून का उल्लंघन
Prashant Kishor voter ID issue : चुनाव आयोग ने जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर को नोटिस जारी किया है। आरोप है कि वह एक ही समय में बिहार और पश्चिम बंगाल, दोनों जगहों पर मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 17 का उल्लंघन है। इस प्रकरण ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी हलचल मचा दी है।
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मामला क्या है?
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत किशोर का नाम कोलकाता के बीडन स्ट्रीट स्थित निर्मल हृदय स्कूल के मतदाता सूची में दर्ज है, वहीं बिहार के रोहतास जिले के कारहगर विधानसभा क्षेत्र (भाग संख्या 767, सीरियल संख्या 621) में भी उनका नाम मौजूद है।
बिहार में उनका मतदान केंद्र माध्य विद्यालय, कोनार बताया गया है, जो उनका पैतृक गांव है।

चुनाव आयोग की आपत्ति
चुनाव आयोग ने अपने नोटिस में लिखा है कि किसी भी व्यक्ति का नाम एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में नहीं हो सकता। धारा 17 के तहत यह अपराध है और धारा 31 के अनुसार इसके लिए सजा का प्रावधान है। आयोग ने किशोर से तीन दिनों के भीतर स्पष्टीकरण देने को कहा है। नोटिस में यह भी उल्लेख है कि उनके नाम के साथ जुड़ा मतदाता पहचान पत्र IUJ1323718 है।
प्रशांत किशोर की टीम का पक्ष
किशोर की टीम के एक सदस्य के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने बिहार में अपना नाम दर्ज कराया, और इसके बाद पश्चिम बंगाल में दर्ज नाम को हटाने के लिए आवेदन किया गया था। हालांकि आवेदन की स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की।
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टीएमसी का रुख और कोलकाता पता विवाद
कोलकाता में जहां किशोर का नाम दर्ज बताया गया है। 121, कालीघाट रोड, वही पता तृणमूल कांग्रेस (TMC) के मुख्यालय का भी है।
स्थानीय टीएमसी पार्षद कजरी बनर्जी (मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भाभी) ने कहा,
“वह (किशोर) यहां काम के दौरान आते-जाते थे और कुछ समय तक ठहरते भी थे, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि उन्होंने यहीं से मतदाता के रूप में नाम दर्ज कराया या नहीं।”
कानूनी पृष्ठभूमि और सियासी असर
भारत के चुनाव कानूनों के अनुसार, किसी व्यक्ति का नाम केवल एक निर्वाचन क्षेत्र में दर्ज होना चाहिए। दो राज्यों में मतदाता सूची में नाम होना कानूनी अपराध है। चुनाव आयोग की यह कार्रवाई ऐसे समय आई है जब प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है। इस नोटिस से उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो सकते हैं, खासकर तब जब वह खुद राजनीतिक शुचिता पर जोर देते आए हैं।
निष्कर्ष: तीन दिनों में तय होगी दिशा
अब सबकी निगाहें प्रशांत किशोर के जवाब पर हैं। अगर वे यह साबित नहीं कर पाए कि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची से उनका नाम हटा दिया गया है, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई संभव है। यह मामला न सिर्फ प्रशासनिक चूक, बल्कि राजनीतिक पारदर्शिता का भी परीक्षण बन गया है।
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