बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण
Akhtarul Iman: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार सबसे ज़्यादा चर्चा जिस नेता की हो रही है, वह हैं अख्तरुल इमान, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के प्रदेश अध्यक्ष। राजनीति के जानकार उन्हें ‘सीमांचल का शेर’ कहकर बुला रहे हैं क्योंकि उन्होंने उन इलाकों में सेंध लगा दी है, जिन्हें RJD और कांग्रेस दशकों से अपना गढ़ मानती आई हैं।
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अख्तरुल इमान कौन हैं?
अख्तरुल इमान का राजनीतिक सफर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से शुरू हुआ था। वे हमेशा गरीबों, पिछड़ों और मुसलमानों के मुद्दों को खुलकर उठाते रहे। उन्होंने बार-बार कहा कि “सीमांचल को उसका हक मिलना चाहिए — सड़क, शिक्षा, रोज़गार और सम्मान।”लेकिन जब उन्हें लगा कि RJD में उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा, तब उन्होंने बड़ा फैसला लिया — पार्टी छोड़कर AIMIM से जुड़ गए। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।
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AIMIM को बिहार में पहचान दिलाई
जब उन्होंने ओवैसी की पार्टी को बिहार में मज़बूत करने की बात की, तो बहुतों ने कहा कि AIMIM यहां कुछ नहीं कर पाएगी। मगर अख्तरुल इमान ने अपनी ज़मीनी पकड़, जनता से सीधा जुड़ाव और मेहनत के दम पर सबको चौंका दिया। 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की 5 सीटें जीतकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। इसके बाद से अख्तरुल इमान का नाम पूरे बिहार में गूंजने लगा और लोग उन्हें “सीमांचल का शेर” कहने लगे।

सीमांचल के असली मुद्दों की आवाज़
किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार ये वो इलाके हैं जिन्हें सीमांचल कहा जाता है। यहां हर साल बाढ़ आती है, रोजगार की कमी है और शिक्षा की स्थिति बेहद कमजोर है। अख्तरुल इमान ने विधानसभा में इन मुद्दों को बार-बार उठाया और कहा —
‘हम सिर्फ वोट बैंक नहीं, इंसान हैं। हमें भी विकास चाहिए, बराबरी चाहिए।’
उनका फोकस रहा धर्म नहीं, विकास की राजनीति। इसीलिए सीमांचल की जनता उन्हें अपनी आवाज़ मानने लगी।
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‘मुस्लिम उपमुख्यमंत्री’ की मांग से मचा सियासी बवाल
बिहार चुनाव 2025 से पहले AIMIM ने एक बड़ा मुद्दा उठाया राज्य में मुस्लिम उपमुख्यमंत्री होना चाहिए। पार्टी का तर्क है कि जब बिहार की 19% आबादी मुस्लिम है, तो सत्ता में उनकी हिस्सेदारी क्यों नहीं? यह सवाल सीधे RJD और कांग्रेस पर निशाना साधता है, जो वर्षों से मुस्लिम वोटों पर भरोसा करती आई हैं। अब AIMIM का यह रुख चुनाव को तीन हिस्सों में बांट रहा है — NDA, महागठबंधन, और AIMIM।
क्या AIMIM सिर्फ वोट काटने वाली पार्टी है?
RJD-कांग्रेस का आरोप है कि AIMIM सिर्फ वोट काटने का काम करती है और अप्रत्यक्ष रूप से BJP को फायदा देती है।
लेकिन अख्तरुल इमान इस धारणा को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है —
“हम मजलूमों की आवाज़ उठाते हैं, मजहब की नहीं। हमारी लड़ाई रोटी, शिक्षा और सम्मान की है।”
वे खुद को ‘सच्चा विकल्प’ बताते हैं, जो बिहार की राजनीति में नई दिशा देना चाहता है।
सीमांचल बना चुनावी रणभूमि
सीमांचल का इलाका हमेशा से बिहार की राजनीति का अहम हिस्सा रहा है। यहां AIMIM के उभार ने RJD और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
2020 की तरह अगर इस बार भी AIMIM ने अच्छा प्रदर्शन किया, तो यह परिणाम बिहार की राजनीति की तस्वीर बदल सकता है।
एक नेता नहीं, एक आंदोलन
अख्तरुल इमान अब केवल एक नेता नहीं रहे- वे सीमांचल के लोगों की उम्मीद और हक की आवाज़ बन चुके हैं। उनकी राजनीति पहचान नहीं, हिस्सेदारी और न्याय की बात करती है। उनकी यही साफ़ सोच लोगों को आकर्षित करती है।
क्या सीमांचल बदलेगा बिहार की राजनीति?
अब बिहार की सियासत तीन ताकतों में बंटी है-NDA, महागठबंधन, और AIMIM। और इन सबके बीच अख्तरुल इमान वह चेहरा हैं जिन्होंने सियासी हलचल मचा रखी है। अब देखना यह है कि “सीमांचल का शेर” बिहार की सत्ता की दहलीज़ तक पहुंच पाएगा या नहीं।
लेकिन इतना तय है कि —
2025 के बिहार चुनाव में अगर सबसे चर्चित नाम कोई है, तो वह अख्तरुल इमान का है।
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