Delhi Pollution: दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए भाजपा सरकार ने मंगलवार को क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश की। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की इस पहल ने जहां उम्मीदें जगाईं, वहीं आम आदमी पार्टी (AAP) ने इसे ‘धोखा’ करार दिया। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग कोई चमत्कार नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो समय और अनुकूल मौसम पर निर्भर करती है।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें सिल्वर आयोडाइड, कैल्शियम क्लोराइड या सोडियम क्लोराइड जैसे रासायनिक पदार्थों को बादलों में डाला जाता है ताकि उनमें मौजूद जलकण एकत्र होकर वर्षा उत्पन्न करें। इसका प्रयोग अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे कई देशों में सूखे या प्रदूषण नियंत्रण के समय किया जाता है। आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों के अनुसार, यह तकनीक “बारिश पैदा करने की नहीं, बल्कि मौजूदा बादलों से वर्षा को प्रोत्साहित करने” की प्रक्रिया है। इसलिए यह तभी सफल हो सकती है जब आसमान में पर्याप्त नमी और सही प्रकार के बादल मौजूद हों।
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दिल्ली में कैसे हुआ प्रयोग?
मंगलवार दोपहर करीब 1:30 बजे आईआईटी कानपुर का एक सेसना विमान उत्तर-पश्चिम दिल्ली के बुराड़ी, मयूर विहार और करोल बाग के ऊपर से उड़ा। इस विमान ने बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया ताकि बारिश शुरू हो और प्रदूषण घटे। दोपहर 3:30 से 4:15 बजे के बीच यह प्रक्रिया दोबारा दोहराई गई, लेकिन नमी और बादलों की कमी के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि सीडिंग के बाद बारिश होने में 15 मिनट से 4 घंटे तक का समय लग सकता है, लेकिन उस दिन आर्द्रता केवल 15-20% थी जबकि सफल सीडिंग के लिए कम से कम 50-60% नमी चाहिए होती है।
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AAP का हमला, BJP की सफाई
प्रयोग के तुरंत बाद AAP नेता सौरभ भारद्वाज ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “बारिश भी धोखा थी! कृत्रिम बारिश का कोई नामोनिशान नहीं। वहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पलटवार करते हुए कहा कि “वैज्ञानिक प्रयोग में असफलता का मतलब विफल नीति नहीं होता। हम वायु प्रदूषण से राहत दिलाने के हर वैज्ञानिक उपाय को आज़मा रहे हैं।’
विशेषज्ञों की राय: “क्लाउड सीडिंग आसान नहीं”
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग तभी प्रभावी होती है जब मौसम पूरी तरह अनुकूल हो।
आईआईटी कानपुर से जुड़े एक वैज्ञानिक ने कहा,
“यह प्रक्रिया तुरंत असर नहीं दिखाती। अगर आप सीडिंग में निवेश कर रहे हैं तो परिणामों को प्रमाणित करने के लिए कई प्रयोगों और वर्षों की निगरानी करनी पड़ती है।”
2018-19 में महाराष्ट्र के सोलापुर में किए गए प्रयोगों में दो साल बाद औसतन 18% वर्षा वृद्धि दर्ज की गई थी। इससे साफ है कि क्लाउड सीडिंग के नतीजे तुरंत नहीं मिलते।
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9-10 और परीक्षणों की योजना
दिल्ली में यह दूसरा परीक्षण था। इससे पहले 23 अक्टूबर की रात भी क्लाउड सीडिंग का प्रयास किया गया था, लेकिन मौसम की अनुकूलता न होने से बारिश नहीं हुई। सितंबर में दिल्ली सरकार ने 3 करोड़ रुपये की लागत से 5 परीक्षणों के लिए आईआईटी कानपुर के साथ एक समझौता (MoU) किया था। अब मंत्री सिरसा ने घोषणा की है कि अगले कुछ दिनों में 9-10 अतिरिक्त परीक्षण किए जाएंगे, जब भी मौसम अनुकूल होगा।
किन कारकों पर निर्भर करती है सफलता?
क्लाउड सीडिंग की सफलता कई प्राकृतिक तत्वों पर निर्भर करती है:
- आर्द्रता (Humidity): कम से कम 50-60% होनी चाहिए।
- बादलों का प्रकार: वर्षा-सक्षम घने बादल जरूरी हैं।
- हवा की दिशा और गति: तेज़ हवाएं सीडिंग को प्रभावित कर सकती हैं।
- नमी की गहराई: बादलों की मोटाई और नमी का अनुपात सीडिंग की प्रभावशीलता तय करता है।
यदि ये सभी परिस्थितियाँ अनुकूल न हों, तो क्लाउड सीडिंग से PM2.5 जैसे प्रदूषक तत्व भी बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष: विज्ञान है, चमत्कार नहीं
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग को लेकर मचे राजनीतिक शोर के बीच एक बात स्पष्ट है — यह कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे तुरंत बारिश हो जाए। यह तकनीक सिर्फ मौजूदा बादलों की वर्षा प्रक्रिया को सक्रिय करने में मदद करती है, न कि उन्हें पैदा करने में। इसलिए, सरकारों को इसे “तुरंत समाधान” की बजाय दीर्घकालिक वैज्ञानिक नीति के रूप में देखना होगा। अगर नियमित निगरानी, सही मौसम डेटा और पारदर्शी रिपोर्टिंग के साथ प्रयोग जारी रहे, तो आने वाले वर्षों में दिल्ली जैसी प्रदूषणग्रस्त महानगरों के लिए यह एक उपयोगी विकल्प साबित हो सकता है।
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