जब बिल्ली निकली बाघ
Funny News: मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में 52 वर्षीय राजू पटेल ने जो किया, उसे सुनकर इंसान हँसे या हैरान हो, तय करना मुश्किल है। रात के अंधेरे में खेत की मेड़ पर उन्हें कुछ हिलता-डुलता दिखा आंखों में लाल चमक, बालों का झुरमुट, और चाल में रॉयल टच। राजू बोले, ‘अरे, अपनी किटी घूम रही होगी,” और बिना सोचे सिर पर हाथ फेर दिया। कहानी यहीं से नहीं, ‘कहकहों का जंगल’ यहीं से शुरू हुआ।
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ठर्रे की ताकत: डर गया बाघ या राजू?
कहते हैं, “शेर की दहाड़ से जंगल काँपता है,” लेकिन उस रात जंगल ठर्रे की खुशबू से कांप उठा। राजू के दोस्तों का दावा है कि उन्होंने “स्थानीय निर्माण” वाला ठर्रा पिया था — इतना मजबूत कि इंसान में ‘टाइगर-ब्रांड आत्मविश्वास’ भर दे। राजू के शब्दों में,
‘मैंने बस कहा, हट न बे किटी… फिर कुछ हुआ ही नहीं, वो बाघ था तो क्या हुआ, मेरे मोहल्ले की बिल्लियों से अलग तो दिख नहीं रहा था।’
बाघ की सहनशीलता भी ग़ज़ब निकली — शायद जंगल में भी अब नशे में इंसानों से उलझने का मन नहीं रहता।
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सुबह-सुबह लगी लाइन ब्रांड बताओ भाई!
सुबह जैसे ही खबर फैली कि “राजू ने बाघ को सहला दिया, गांव में लोगों की लाइन लग गई। कोई पूछ रहा था – “राजू भैया, कौन सा ठर्रा था?”
दूसरा कह रहा था थोड़ा बचा है क्या, डर लगता है तो ऑफिस में काम आ जाए। यहाँ तक कि देसी बार मालिकों ने ऑफर दिया भैया, ब्रांड का नाम बताओ, ‘बाघ वाले ठर्रे’ के नाम से बेच देंगे।
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विज्ञान बोले – “ये नशे का कमाल नहीं, किस्मत का खेल है”
वन विभाग के अफसरों ने जब घटना सुनी तो बोले, “बाघ शायद पेट भरा था, नहीं तो कहानी किसी और टोन में होती। स्थानीय डॉक्टर ने भी कहा, ठर्रा नहीं, भगवान का आशीर्वाद था। लेकिन गाँव के युवाओं ने नारा दिया –
‘राजू भैया – जंगल के बादशाह, ठर्रे के महामहिम!’
डर पर विजय या नशे की नादानी?
राजू पटेल अब स्थानीय लेजेंड बन चुके हैं। कोई उन्हें “बाघ मित्र” कहता है, तो कोई किटी लवर। पर सच्चाई यही है कभी-कभी ठर्रे की एक बोतल इंसान को इतना निडर बना देती है कि वो डर और मूर्खता के बीच की महीन रेखा मिटा देता है।
राजू के शब्दों में समापन सबसे सटीक है:
“बाघ हो या बिल्ली… जब ठर्रा बोले, तो सब ‘किटी’ लगते हैं!”
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