दिल्ली में बच्चों की गुमशुदगी का संकट
Missing Children: दिल्ली पुलिस के ताज़ा आंकड़ों ने एक बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश की है। बीते 10 वर्षों (2015 से 2025) के दौरान राष्ट्रीय राजधानी से 1.84 लाख बच्चे लापता हुए, जिनमें से 1.33 लाख बच्चे तो मिल गए, लेकिन अब भी 50,771 बच्चे गुमशुदा हैं। हर साल हजारों बच्चों का गायब होना और एक बड़ी संख्या का आज तक न मिल पाना, समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक गहरी चिंता का विषय है।
साल दर साल आंकड़े, कहां सबसे ज्यादा बच्चे गायब हुए?
| वर्ष | कुल लापता बच्चे | ट्रेस किए गए | अब तक लापता |
|---|---|---|---|
| 2015 | 14,732 | 10,548 | 4,184 |
| 2016 | 15,984 | 11,742 | 4,242 |
| 2017 | 16,870 | 12,638 | 4,232 |
| 2018 | 17,985 | 13,822 | 4,163 |
| 2019 | 18,063 | 13,894 | 4,169 |
| 2020 | 13,647 | 11,982 | 1,665 |
| 2021 | 15,276 | 12,413 | 2,863 |
| 2022 | 16,483 | 13,127 | 3,356 |
| 2023 | 18,197 | 13,836 | 4,361 |
| 2024 | 19,047 | 14,356 | 4,691 |
| 2025 (जनवरी–अक्टूबर) | 14,828 | 7,443 | 7,385 |
| कुल | 1,84,112 | 1,33,801 | 50,771 |
लड़कियाँ ज्यादा लापता, रिकवरी दर भी कम
लिंग आधारित विश्लेषण दर्शाता है कि हर साल लड़कियां लड़कों की तुलना में ज्यादा लापता होती हैं। 2015–2025 के बीच 98,036 लड़कियां और 86,368 लड़के गुमशुदा हुए। जहां 70,696 लड़कियां वापस मिल चुकी हैं, वहीं 27,340 लड़कियां अब तक नहीं मिलीं यानी हर साल औसतन 2,700 लड़कियाँ अब भी लापता रह जाती हैं।

आयु वर्ग के अनुसार आंकड़े
| आयु वर्ग | कुल लापता बच्चे | ट्रेस किए गए | ट्रेसिंग दर (%) |
|---|---|---|---|
| 0–8 वर्ष | 5,503 | 4,622 | 84% |
| 8–12 वर्ष | 6,494 | 5,975 | 92% |
| 12–18 वर्ष | 1,72,115 | 1,23,204 | 71% |
किशोरावस्था (12–18 वर्ष) में बच्चों के लापता होने की संभावना सबसे अधिक है । कुल मामलों का लगभग 82%। 2025 में ही अब तक 4,167 किशोर, जिनमें से तीन-चौथाई लड़कियां थीं, लापता हुए हैं। इनमें से सिर्फ 69% ही अब तक मिले हैं।
2025 की स्थिति, अब भी आधे बच्चे लापता
साल 2025 के पहले 10 महीनों में ही 14,828 नए मामले दर्ज किए गए। इनमें से 7,443 बच्चों को वापस लाया जा सका, लेकिन 7,385 (लगभग 50%) बच्चे अभी भी गुमशुदा हैं। यह दर्शाता है कि जागरूकता अभियान और सरकारी प्रयासों के बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है।
सतत सामाजिक संकट
दिल्ली जैसे महानगर में बच्चों का बार-बार लापता होना न सिर्फ मानव तस्करी, बाल श्रम और अपराध नेटवर्क की गंभीरता दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि पुलिस और समाज के बीच समन्वय और सतर्कता की कमी अब भी बनी हुई है। जरूरत है कि स्कूलों, स्थानीय समुदायों, अभिभावकों और पुलिस के बीच भरोसे की कड़ी मजबूत की जाए ताकि कोई बच्चा गुमशुदा आंकड़ों का हिस्सा न बने।
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