Hyderabad Accident Case: तेलंगाना में सोमवार सुबह हुए भीषण सड़क हादसे ने न केवल 19 लोगों की जान ले ली, बल्कि एक पुराने और उलझे हुए पर्यावरणीय विवाद को फिर से सुर्खियों में ला दिया। हैदराबाद-बीजापुर नेशनल हाईवे (NH-163) का वह 46 किलोमीटर लंबा हिस्सा, जहां यह टक्कर हुई, वर्षों से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के केस में फंसा हुआ है। इसी वजह से इस सड़क के चौड़ीकरण का काम अब तक शुरू नहीं हो पाया है।
यह हादसा चेवेला और तेलंगाना पुलिस अकादमी के बीच हुआ, जो NH-163 का बेहद संकरा और जोखिमभरा हिस्सा माना जाता है। यहां कोई डिवाइडर तक नहीं है और सड़क इतनी तंग है कि बड़े वाहनों के गुजरने पर खतरा हमेशा बना रहता है। चेवेला के तीन बार के विधायक काले यादैया ने बताया, “चेवेला से हैदराबाद तक की सड़क बेहद संकरी है। कई बार हमने पर्यावरण कार्यकर्ताओं से बैठक कर समझौते का रास्ता निकालने की कोशिश की, लेकिन मामला अदालत में अटका हुआ है।’
इस हाईवे को चार लेन में बदलने की योजना आठ साल पहले ही बनी थी। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने इस हिस्से के लिए ₹900 करोड़ का बजट मंजूर भी कर दिया, लेकिन अदालत और NGT में केस लंबित रहने के कारण काम शुरू नहीं हो पाया। यादैया ने बताया कि अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में एनएचएआई ने चेवेला बायपास के एक छोटे हिस्से पर आंशिक काम शुरू किया था, लेकिन मुख्य प्रोजेक्ट अभी भी रुका हुआ है।
यह विवाद केवल सड़क चौड़ीकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रकृति की धरोहर को बचाने की लड़ाई भी शामिल है। दरअसल, इस मार्ग के दोनों ओर करीब 850 विशाल बरगद के पेड़ हैं जिन्हें ‘चेवेला बरगद’ कहा जाता है। ये पेड़ निजाम काल में लगाए गए थे और अब यह हिस्सा एक हरित गलियारे (Green Corridor) का रूप ले चुका है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सड़क चौड़ी होने पर सैकड़ों बरगद काटे जा सकते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर असर पड़ेगा।
2019 में ‘सेव चेवेला बरगद’ नाम के समूह ने एनएचएआई के खिलाफ NGT में याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि परियोजना के तहत सिर्फ कुछ पेड़ों को स्थानांतरित किया जाएगा जबकि सैकड़ों को काटा जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि सोमवार को जब हादसा हुआ, उसी दिन इस केस की अंतिम सुनवाई भी हुई। ट्रिब्यूनल ने पहले ही मार्च में आदेश दिया था कि 46 किमी के इस हिस्से पर काम तब तक न शुरू किया जाए जब तक पर्यावरणीय समिति (EAC) की मंजूरी पेड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित न करे।
पर्यावरण कार्यकर्ता तेजह बलनत्रापु, जो याचिकाकर्ता भी हैं, ने बताया कि उन्होंने एनएचएआई के साथ मिलकर संशोधित प्रस्ताव NGT के सामने रखा है।
इस प्रस्ताव के तहत —
- लगभग 765 बरगद के पेड़ यथास्थान (In situ) रखे जाएंगे।
- करीब 130 पेड़ों को कुछ मीटर दूर स्थानांतरित किया जाएगा ताकि सड़क और पेड़ दोनों सुरक्षित रहें।
- बड़े पेड़ों के समूहों को छेड़ा नहीं जाएगा।
- सड़क परियोजना के लिए एक सार्वजनिक मॉनिटरिंग कमेटी बनाने का सुझाव भी दिया गया है, जिसमें आम नागरिक शामिल होंगे।
बलनत्रापु ने कहा, “हमने ऐसी योजना स्वीकार की है जिससे सड़क निर्माण और पर्यावरण संरक्षण दोनों साथ चल सकें। अब फैसला NGT पर निर्भर करता है।’
हादसे के बाद मृतकों के परिजनों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और नागरिकों ने प्रशासन पर नाराजगी जताई। चेवेला सांसद कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी और पूर्व विधायक सबीता इंद्रा रेड्डी ने भी सड़क की स्थिति को लेकर सवाल उठाए। लोगों का कहना है कि अगर सड़क का चौड़ीकरण समय पर हो गया होता, तो यह भीषण दुर्घटना टल सकती थी।
यह मामला एक बड़े सवाल को सामने लाता है क्या विकास के लिए प्रकृति की कीमत चुकानी जरूरी है? NH-163 का चेवेला सेक्शन इस समय पर्यावरण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन का प्रतीक बन गया है। NGT का आगामी निर्णय यह तय करेगा कि क्या बरगद के इस हरित गलियारे को बचाते हुए लोगों की जान की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
