Bihar Election 2025 West Champaran Ground Report: पश्चिम चंपारण महात्मा गांधी के पहले सत्याग्रह की धरती अब एक अलग जंग का मैदान बन चुकी है। यहाँ की जनता विकास और बदलाव के बीच झूल रही है। बीजेपी अपने गढ़ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नीतियों और बेहतर सड़कों के सहारे भरोसा जीतने की कोशिश में है, वहीं महागठबंधन युवाओं के सपनों और रोजगार के मुद्दे पर जनता को अपनी ओर खींचने की मुहिम चला रहा है।
कभी अपहरण, डकैती और अपराध के लिए बदनाम पश्चिम चंपारण में अब हालात काफी बदले हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, यह बिहार के उन जिलों में था जहाँ लोग बाहर से आकर बसते थे, यानी “पुल फैक्टर” काम करता था। कोविड के बाद बड़ी संख्या में मजदूर लौटे और कई यहीं बस गए।
संजय गुप्ता, जो पहले मुंबई में काम करते थे, अब राष्ट्रीय राजमार्ग किनारे एक छोटी दुकान चलाते हैं। वे कहते हैं,
‘अब सड़कें अच्छी हैं, कानून-व्यवस्था ठीक है, रात तक दुकान खोल सकते हैं। पहले तो अंधेरा होते ही बंद करना पड़ता था।’
बेतिया के निवासी, कहती हैं,
‘बेटे को बाहर नहीं भेजना पड़ा, यहीं मछली मंडी में काम करता है। जो थोड़ी कमाई होती है, उससे घर चलता है, लेकिन परिवार साथ है, यही बड़ी बात है।’
ऐसे कई परिवार मानते हैं कि नीतीश कुमार की सरकार ने हालात सुधारे हैं। नीतीश सरकार के ‘सुशासन’ के नारे को कई महिलाएं और बुज़ुर्ग अब भी सराहते हैं। अधिवक्ता राम बाबू कुमार कहते हैं,
माइग्रेशन 3-5 प्रतिशत घटा है। अपराध कम हुआ, पर नौकरियों की कमी अब भी बड़ी समस्या है।
लोग मानते हैं कि सड़कों और सुरक्षा में सुधार हुआ है, पर रोजगार के मोर्चे पर सरकार पिछड़ी है।
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राजद और कांग्रेस के गठबंधन ने इस बार युवाओं पर फोकस किया है। तेजस्वी यादव को “बदलाव का चेहरा” बताकर वे एनडीए की नीतियों को “पुरानी और थकी हुई” कह रहे हैं। रिक्शा चालक राजेश कुमार कहते हैं,
सड़कें तो ठीक हैं, पर हर बार सड़क के नाम पर वोट नहीं दे सकते। रोज़गार नहीं है, नौजवान फिर बाहर जा रहा है।’
28 वर्षीय राज कुमार, जो हैदराबाद में कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते हैं, कहते हैं,
‘अगर सरकार ने कुछ किया होता तो मैं अपने बच्चों से दूर न होता। इस बार मैं प्रशांत किशोर को वोट दूंगा वो कुछ अलग करने की बात करता है।
प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा ने युवाओं के बीच उम्मीद जगाई है। कई लोग उन्हें विकल्प के रूप में देखने लगे हैं।
प्रदीप कुमार, जो पहले लद्दाख में काम करते थे, कहते हैं,
‘हमारे परिवार ने पहली बार जन सुराज को वोट देने का फैसला किया है। हमारे बुजुर्ग चाचा कहते हैं कि बिहार को अब बदलाव चाहिए।’
बेतिया सीट से बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री और पूर्व उपमुख्यमंत्री रेनू देवी मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस के वसी अहमद, जन सुराज के अनिल सिंह और निर्दलीय रोहित सिकारिया हैं। 2020 में रेनू देवी ने कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी को 18,079 वोटों से हराया था। इस बार मुकाबला कठिन है क्योंकि बदलाव की हवा यहाँ तक पहुंच चुकी है।
पश्चिम चंपारण के नौ विधानसभा क्षेत्रों में से सात सीटें बीजेपी के पास हैं -बेतिया, रामनगर, नरकटियागंज, बगहा, लौरिया, नौतन और चनपटिया। एक सीट जेडीयू और एक सीट सीपीआई(एमएल) के पास है। दूसरे चरण में यहाँ 11 नवंबर को मतदान होगा।

चंपारण बिहार के शुगर बेल्ट का केंद्र है। यहां छह शुगर मिलें हैं, जिनमें एक सरकारी है। प्रतीक एडविन शर्मा, चनक्य कॉलेज ऑफ एजुकेशन के चेयरमैन, कहते हैं,
‘पहले गन्ना बेचने के लिए लोग गोरखपुर जाते थे। अब 25-40 किलोमीटर के दायरे में मिलें हैं। इससे किसानों की आमदनी और जमीन की कीमत दोनों बढ़े हैं।’
पिछले 20 सालों में जमीन की कीमतों में 200% तक की बढ़ोतरी हुई है। इसलिए कई युवा अब यहीं रहना पसंद करते हैं। शर्मा, जो बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं, मानते हैं,
‘माइग्रेशन तो घटा है, लेकिन ब्रेन ड्रेन बढ़ा है। जो टैलेंट बिहार में रहकर बदलाव ला सकता था, वो दिल्ली-मुंबई चला गया। सरकार को मानव संसाधन पर ज्यादा खर्च करना चाहिए।’
नीतीश सरकार ने चनपटिया में स्टार्टअप जोन शुरू कर युवाओं को रोकने की कोशिश की थी। लेकिन यह प्रयोग राज्यभर में दोहराया नहीं जा सका।
बीजेपी सांसद संजय जायसवाल कहते हैं,
‘महागठबंधन सरकार के 18 महीनों में तेजस्वी यादव ने कई प्रोजेक्ट बंद कर दिए। लेकिन अब केंद्र सरकार ने कुमारबाग में मल्टी सेक्टर SEZ और दो इंडस्ट्रियल पार्क की घोषणा की है। जब एनडीए फिर आएगा तो गति मिलेगी।
चंपारण के लोग अब ‘सुरक्षा’ और ‘सुविधा’ को हासिल कर चुके हैं, पर रोजगार और अवसरों की तलाश अब भी जारी है। कई युवा अब कहते हैं कि “सड़क और बिजली” की उपलब्धि पर्याप्त नहीं, उन्हें ‘रोज़गार और स्थायित्व’ चाहिए।
पश्चिम चंपारण आज दो भावनाओं के बीच खड़ा है नीतीश सरकार के कामों के प्रति सम्मान और बदलाव की चाह। यहां की सड़कें अब सुरक्षित हैं, लेकिन सपनों की मंज़िल अभी बाकी है। 11 नवंबर को होने वाले मतदान में यह तय होगा कि जनता “स्थिरता” चुनेगी या बदलाव।
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