Rohini Acharya quits politics: बिहार की राजनीति में जिस दिन सत्ता का पलड़ा बदला, ठीक उसी अगले दिन लालू प्रसाद यादव के परिवार के भीतर से ऐसी आवाज़ गूंज उठी जिसने सबको चौंका दिया। रोहिणी आचार्या जो आमतौर पर सोशल मीडिया पर अपने पिता और भाइयों के पक्ष में सबसे तेज़ बोलती दिखती थीं अचानक घोषणा कर बैठीं कि वो ‘राजनीति छोड़ रही हैं… परिवार से नाता तोड़ रही हैं।’ उनके शब्दों में हताशा भी थी, गुस्सा भी और एक राजनीतिक घराने की चुप्पी को चीरता हुआ एक तीखा सवाल भी क्या बिहार की जनता के फैसले ने सिर्फ सत्ता बदली है या लालू परिवार की सियासत की दिशा भी?
रोहिणी का X पोस्ट एक राजनीतिक घटना से ज्यादा एक पारिवारिक विस्फोट जैसा था। उन्होंने लिखा कि संजय यादव और रमीज़ ने कहा था यही करो… और मैं सारी गलती अपने सिर ले रही हूं। ये पंक्ति सिर्फ एक आरोप नहीं थी, बल्कि उस अंदरूनी खींचतान का इशारा थी, जिसके बारे में पटना से लेकर दिल्ली तक कानाफूसी चलती रही कि RJD के भीतर फैसले कौन ले रहा है? कौन किसके कहने पर चल रहा है? और कौन किनारे कर दिया जा रहा है?
संजय यादव तेजस्वी के करीबी, पार्टी में नई पीढ़ी का चेहरा। रमीज़—तीन दशक की दोस्ती का साथी, पुराना भरोसेमंद। और रोहिणी परिवार के भीतर वह आवाज़, जो कई महीनों से खामोश नहीं रह पा रही थी। पिछले महीने जब उन्होंने अपने पिता लालू और भाई तेजस्वी को X पर अनफॉलो किया, तब भी संकेत साफ था कि परिवार में सबकुछ सामान्य नहीं है। एक राजनीतिक परिवार में सोशल मीडिया के ‘अनफॉलो’ का मतलब महज बटन नहीं होता वो एक घोषणा होता है।
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लेकिन ये विस्फोट ऐसे समय आया जब RJD के लिए ज़मीन खिसक चुकी थी। महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गया। RJD 75 से सीधा 24 पर आ गिरा। और NDA ने 200 के पार जाकर वो जीत दर्ज की जो एक राजनीतिक युग के उलटने जैसी थी। यह सिर्फ हार नहीं थी यह उस राजनीतिक नींव के हिलने की चेतावनी थी, जिस पर RJD ने तीन दशक खड़े रहकर बिहार की सियासत की धुरी अपने इर्द-गिर्द घुमाई थी।
तेजप्रताप की पार्टी से विदाई ने परिवार की तिरछी रेखाओं को पहले ही उजागर कर दिया था। रोहिणी इसी बात से नाराज़ थीं सोशल मीडिया पर भी, भीतरखाने भी। फिर भी चुनाव में उन्होंने तेजस्वी के लिए प्रचार किया। बहन का फर्ज़ निभाया। लेकिन नतीजे आए तो मन की आग फिर बाहर छलक आई। सवाल ये है क्या रोहिणी की नाराज़गी सिर्फ परिवार तक सीमित है या ये पार्टी की संरचना पर भी प्रश्नचिह्न है?
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बिहार के चुनाव नतीजों ने RJD के लिए जो संदेश छोड़ा, वह साफ है जनता बदलाव चाहती थी। NDA की 85% स्ट्राइक रेट, बीजेपी का सबसे बड़े दल के रूप में उभरना और जेडीयू का दोबारा मजबूती से खड़े रहना सिर्फ राजनीतिक जीत नहीं है यह एक जनादेश है कि मतदाता दिशा बदल चुके हैं।
इस भारी हार के बाद जो भीतर का झगड़ा अब सतह पर आया है, वह RJD के लिए सबसे मुश्किल चुनौती है। अगर परिवार में दरार पड़ेगी, तो सियासी लड़ाई कौन लड़ेगा? अगर अंदर ही अंदर अविश्वास बढ़ेगा, तो पार्टी किस दिशा में जाएगी? अगर फैसलों का केंद्र अस्पष्ट रहेगा, तो कार्यकर्ता किसके पीछे खड़े होंगे?
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रोहिणी की चुप्पी टूट गई है। लेकिन बिहार की राजनीति में सवालों की गूंज अभी लंबी चलेगी। तेजस्वी यadav क्या इस संकट को संभाल पाएंगे? लालू यादव क्या पुराने संतुलन को फिर से स्थापित कर पाएंगे? या फिर यह RJD के भीतर उस परिवर्तन की शुरुआत है, जिसकी आहट कई सालों से दबी आवाज़ में सुनाई देती रही?
अभी इतना साफ है बिहार की सियासत में बदलाव सिर्फ विधानसभा के भीतर नहीं हुआ है, वह लालू परिवार के आंगन में भी उतर आया है।
और जब किसी राजनीतिक परिवार का आंगन हिलता है, तो उसकी गूंज पूरे राज्य की राजनीति में सुनाई देती है।
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