Why Dhirendra Krishna Shashtri became emotional: ‘सनातन हिंदू एकता पदयात्रा’ के सातवें दिन का माहौल बिल्कुल अलग था। मौसम हल्का-सा ठंडा, लेकिन श्रद्धालुओं की गर्मजोशी बेहद तेज। मंच के सामने हजारों की भीड़ थी हर कोई जय श्रीराम के जयकारे लगा रहा था, तो कहीं लोग बागेश्वर धाम सरकार की एक झलक पाने के लिए घंटों से खड़े थे। जैसे ही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री मंच पर पहुंचे, लाउडस्पीकरों पर घोष गूंज उठा। लेकिन उसी बीच एक ऐसा क्षण आया, जिसने पूरे माहौल को भावुक बना दिया। शास्त्री जी की आंखें भर आईं, उनकी आवाज कांप गई और कुछ देर के लिए मंच पर सन्नाटा छा गया।
धीरेंद्र शास्त्री भावुक क्यों हुए? यह सवाल वहां मौजूद हर व्यक्ति के मन में था। असल में, पदयात्रा की शुरुआत से ही वे 104 डिग्री बुखार के बावजूद यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं। डॉक्टरों ने आराम की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने पदयात्रा को रोकने से इनकार कर दिया। जब मंच संचालक ने यह बात भीड़ को बताई, तो लोगों की ओर से जबरदस्त तालियां और जयकारे गूंजने लगे। इतने प्रेम और आशीर्वाद को देखकर शास्त्री जी भावुक हो उठे। उन्होंने कहा, यह यात्रा सिर्फ मेरी नहीं है, यह हर सनातनी की यात्रा है। आप लोगों का प्यार देखकर शरीर का दर्द भी भुला देता हूं।’
इसके अलावा, मंच पर उन्हें एक वृद्ध महिला मिलीं, जो व्हीलचेयर पर बैठकर पदयात्रा में शामिल थीं। वे रोते हुए बोलीं बेटा, तुम जहां कहोगे, वहां चलूंगी… बस धर्म की रक्षा करते रहना। यह सुनते ही शास्त्री जी की आंखें नम हो गईं। उन्होंने महिला के पैर छुए और कहा कि ऐसे भक्तों का आशीर्वाद पदयात्रा की सबसे बड़ी शक्ति है।
पदयात्रा के दौरान कई युवाओं ने भी मंच पर आकर अपना अनुभव साझा किया। किसी ने बताया कि वह पहली बार धर्म के लिए इतना बड़ा आयोजन देख रहा है, तो किसी ने कहा कि सनातन संगठन के लिए इस तरह की एकता जरूरी है। जब एक विद्यार्थी ने कहा हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी धर्म, संस्कृति और मूल्यों को समझे तो शास्त्री जी रो पड़े। उन्होंने कहा कि यही इस यात्रा का असली उद्देश्य है युवाओं को जोड़ना, संस्कृति को बचाना और समाज में एकता का संदेश देना।
भीड़ बढ़ती गई, जयकारे तेज होते गए, और इसी बीच शास्त्री जी ने कहा अगर इस देश की आत्मा को बचाना है, तो सनातन की एकता जरूरी है। शरीर कमजोर हो सकता है, लेकिन मन कभी थक नहीं सकता। यह सुनकर हजारों लोग खड़े होकर तालियां बजाने लगे। कई लोग भी भावुक हो गए। अंत में, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने सभी से अपील की कि इस पदयात्रा को राजनीति की नजर से न देखें। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन है, जो हर वर्ग को जोड़ने के लिए निकला है। उन्होंने कहा कि जहां भी भेदभाव है, जहां भी टूटन है, उस जगह पर यह यात्रा मरहम का काम करेगी।
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इस तरह, भीड़ के प्रेम, भक्तों की भावनाएं और यात्रा की ऊर्जा ने शास्त्री जी को गहराई से प्रभावित किया। उसी एहसास ने उन्हें मंच पर भावुक कर दिया एक ऐसा क्षण, जो हर व्यक्ति की यादों में दर्ज रह गया।
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