Lalu family rift: बिहार की राजनीति में सत्ता, परिवार और भावनाओं की तीन परतें हमेशा साथ-साथ चलती हैं। लेकिन इस बार मामला सिर्फ सत्ता का नहीं, घर के भीतर की उस टूटती दीवार का है, जिसे अब रोक पाना शायद किसी के बस में नहीं रहा। रोहिणी आचार्य के भावुक ट्वीट के बाद जो तूफ़ान उठा, उसने लालू परिवार के पूरे ढांचे को झकझोर दिया। और अब तो तीन और बहनों रागिनी, चंदा और राजलक्ष्मी का बच्चों के साथ पटना आवास छोड़ देना, एक बड़े संकेत की तरह है कि अंदरूनी कलह अब सड़क पर आ चुकी है।
तेज प्रताप यादव का बयान ‘हमारी बहन का जो अपमान करेगा, फिर कृष्ण जी का सुदर्शन चक्र चलेगा’ सिर्फ एक भावुक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि परिवार में बढ़ते अविश्वास और टूटन की सबसे तेज़ गूंज है। तेज प्रताप कई बार अपनी भावनाओं को खुलकर सामने रखने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार उनके शब्द राजनीति से ज़्यादा परिवार के दर्द को उजागर करते दिखे।
रोहिणी आचार्य पहले ही साफ-साफ कह चुकी थीं कि उन्हें गंदी गालियां दी गईं, चप्पल उठाकर मारने की कोशिश हुई, और मजबूरी में उन्हें रोते-रोते मां-बाप का घर छोड़ना पड़ा। रोहिणी ने अपने पोस्ट में जिन नामों का जिक्र किया संजय यादव, रमीज और यह पूरा खेमेबाज़ी का मसला वह बताता है कि लालू परिवार के भीतर सिर्फ रिश्तों की दरार नहीं, बल्कि राजनीतिक खेमों का टकराव भी अपनी चरम पर पहुंच चुका है।
ऐसे में तेज प्रताप का खुलकर बहनों के पक्ष में खड़ा होना सिर्फ भाई का फर्ज़ नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है कि परिवार की लड़ाई सिर्फ भीतर नहीं, अब जनता के सामने भी खुल रही है। तेज प्रताप ने हमेशा अपनी साफगोई और बगावती तेवर से ध्यान खींचा है। चाहे पार्टी नेतृत्व से असहमति हो या तेजस्वी पर निशाना साधना तेज प्रताप का किरदार हमेशा सीधी बात करने वाला रहा है। और इस विवाद में उनका सुर ऐसा है जैसे वे एक बार फिर परिवार की राजनीति को नए मोड़ पर खड़ा कर रहे हों।
लालू परिवार बिहार की राजनीति का केंद्र रहा है। लेकिन आज वही परिवार खुद सवालों के घेरे में है। बेटियों का घर छोड़ना, रोहिणी का आंसू भरा पोस्ट, और अब तेज प्रताप का आक्रामक बयान इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह परिवार खुद को बचा पाएगा, जिस पर राजद की राजनीति टिकी है?
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यह पहली बार है जब लालू यादव की बेटियां इस कदर खुलकर सामने आई हैं। और उनकी नाराज़गी सिर्फ घर की समस्या नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर की उस राजनीति को उजागर करती है जहां भरोसा कम और गुटबाज़ी ज़्यादा दिख रही है। तेज प्रताप की चिंता बहन के सम्मान की है, लेकिन असली संकट उस परिवार की एकता है, जो अब बिखरने की कगार पर है।
बिहार की जनता के लिए यह सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि उस राजनीतिक विरासत का भविष्य है जो लालू यादव के नाम से जुड़ी है। तेज प्रताप भले ही अपने अंदाज में चेतावनी दे रहे हों, लेकिन राजनीति में चेतावनियां कम, संकेत ज़्यादा मायने रखते हैं और संकेत साफ है कि लालू परिवार के भीतर अब सबकुछ पहले जैसा नहीं रहा।
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परिवार की इस टूटन का असर पार्टी पर पड़ना तय है। सवाल यह है कि क्या यह कलह राजद को भीतर से खोखला कर देगी, या फिर यह संकट एक नए नेतृत्व संघर्ष की भूमिका तैयार करेगा? राजनीति में रिश्ते कमजोर पड़ जाएं तो सत्ता भी टिक नहीं पाती, और अभी लालू परिवार उसी चौराहे पर खड़ा है जहां भावनाएं, आरोप और अविश्वास सब एक साथ सामने खड़े हैं।
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