West Bengal voter list revision fear politic: पश्चिम बंगाल में राजनीतिक माहौल इन दिनों किसी लोकतांत्रिक अभ्यास से ज़्यादा एक शून्य-राशि वाली लड़ाई जैसा दिखने लगा है, जहां 2026 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए हर कदम को सियासी चश्मे से देखा जा रहा है। वोटर लिस्ट की सफाई जैसे नियमित प्रशासनिक काम को भी अब राजनीतिक हथियार में बदल दिया गया है।
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सियासी डर की राजनीति
त्रिणमूल कांग्रेस ने वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर जिस तरह भय का माहौल बनाया है, उसने राज्य की राजनीति को एक अलग मोड़ दे दिया है। बंगाल के सत्ताधारी दल का दावा है कि “24 दिनों में 31 लोगों की मौत SIR की वजह से हुई”, और इसे ‘Silent Invisible Rigging’ का नाम दिया गया है। लेकिन सवाल उठता है, क्या सचमुच यह डर वास्तविक है या फिर एक राजनीतिक रणनीति?
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माइग्रेशन और वोटर वेरिफिकेशन पर बढ़ती बेचैनी
मीडिया रिपोर्ट्स में बड़ी संख्या में अवैध या बिना दस्तावेज वाले लोगों के बांग्लादेश सीमा पर लौटने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। कई घरों से घरेलू सहायिकाओं के गायब होने, झुग्गियों के खाली होने और बड़ी संख्या में भीड़ के सीमाओं पर जमा होने से असमंजस बढ़ा है। इसी बीच त्रिणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने इन घटनाओं को “स्क्रिप्टेड” बताया और जिम्मेदारी से अपना दामन झाड़ते हुए कहा, ‘फर्जी वोटर कार्ड तो लेफ्ट सरकार के समय बने होंगे।‘ यानी सवाल बना रहता है कि फिर जवाबदेही किसकी है?
EC पर दबाव बनाम राजनीतिक नैरेटिव का खेल
BJP का आरोप है कि पूरा विवाद त्रिणमूल द्वारा भय की राजनीति गढ़ने का हिस्सा है। पार्टी का कहना है कि SIR पूरा संवैधानिक और नियमित अभ्यास है, जिसमें मृत, दोहरी प्रविष्टि और स्थानांतरित वोटरों को हटाने का काम होता है। EC भी साफ कर चुका है कि,
यह अभ्यास नागरिकता तय नहीं करता, यह केवल वोटर लिस्ट की शुद्धता से जुड़ा है।
इसके बावजूद डर, भ्रम और अफवाहों की आग लगातार भड़काई जा रही है।
2002 के दस्तावेज और जनता की दिक्कतें
SIR में कई जगह पुराने दस्तावेजों खासकर 2002के वोटर रोल की मांग की जा रही है, जबकि बंगाल के कई इलाकों में लोगों के पास यह कागजात या तो हैं ही नहीं या फिर वर्षों में गुम हो गए। इस वजह से दिहाड़ी मजदूर, घरेलू कामगार, सीमावर्ती इलाके के लोग और वे तमाम परिवार जो रोजमर्रा की जिंदगी में संघर्ष कर रहे हैं सब अचानक भय से घिर गए।
सिस्टम का बोझ: BLOs पर दबाव और मौतों का मुद्दा
त्रिणमूल मौतों का आरोप SIR पर लगा रही है कहीं हृदयघात से मौत, कहीं आत्महत्या, कहीं BLOs पर काम का दबाव। वहीं BJP का कहना है कि यह,
विचलन पैदा करने और मृतकों की राजनीति करने का तरीका है।
सीमा पर जटिल स्थिति: BSF और BGB के बीच तालमेल की जरूरत
बॉर्डर पर अचानक भीड़ बढ़ने और लौटने की घटनाओं ने BSF को भी मुश्किल में डाल दिया है। BSF को बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स के साथ मिलकर ऐसी प्रविष्टियों को संभालना पड़ रहा है, जबकि राज्य सरकार इसे केंद्र की जिम्मेदारी बताकर खुद को किनारे कर रही है।
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वोटर सूची की सफाई, या बंगाल की राजनीति की नई जमीन?
असल सवाल यही है, क्या SIR जैसी संवैधानिक प्रक्रिया को राजनीति की भट्टी में झोंक दिया गया है? क्या वोटर लिस्ट की सफाई अब राजनीतिक दलों के लिए नया युद्धक्षेत्र बन गई है? और क्या बंगाल में यह महज सत्य और झूठ के बीच की लड़ाई है या फिर भय और भरोसे के बीच का संघर्ष? 2026 के चुनाव करीब हैं और साफ दिख रहा है, बंगाल में अब राजनीति मुद्दों से नहीं, डर और भरोसे की लड़ाई से तय होगी।
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