Indresh Upadhyay Sanatan Hindu Ekta Padyatra Speech : सनातन संस्कृति के उत्थान और समाज की एकता के संदेश को लेकर निकली Sanatan Hindu Ekta Padyatra रविवार को अपने अंतिम पड़ाव Vrindavan–Mathura पहुंची। इस ऐतिहासिक दिन का सबसे बड़ा आकर्षण था प्रसिद्ध कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय का प्रभावशाली और भावनात्मक संबोधन, जिसे सुनने के लिए हजारों श्रद्धालु और साधु-संत मौके पर मौजूद रहे।

सनातन धर्म मानवता का मार्ग है
पदयात्रा के अंतिम दिन सुबह से ही वातावरण भक्तिमय और ऊर्जावान दिखाई दिया। Vrindavan की गलियों में हर-हर महादेव, जय श्रीराम और जय-जय राधे की गूंज में श्रद्धालु पैदल चलते हुए कार्यक्रम स्थल तक पहुंचे। मंच पर मौजूद धार्मिक नेताओं, पदयात्रा संयोजकों और स्थानीय साधु-संतों ने इंद्रेश उपाध्याय का स्वागत किया।
अपने संबोधन में इंद्रेश उपाध्याय ने कहा कि सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ का विषय नहीं बल्कि मानवता, करुणा और कर्तव्य का मार्ग दिखाने वाला जीवन दर्शन है। उन्होंने कहा कि देश में जब भी सनातन पर सवाल उठाए जाते हैं, तो समाज की एकजुटता और मजबूत हो जाती है। “हमारी संस्कृति इतनी विशाल और दिव्य है कि इसे कोई मिटा नहीं सकता। जब-जब चुनौती आई है, तब-तब सनातन और उज्ज्वल होकर निकला है,” उन्होंने कहा।
संस्कृति पर हमला नहीं सहन होगा
इंद्रेश उपाध्याय ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृति, इतिहास और परंपराओं को समझने का समय यही है। उन्होंने सामाजिक सौहार्द, सद्भाव और सकारात्मकता को बढ़ावा देने की अपील की। उन्होंने जोर देकर कहा कि “हिंदू एकता का अर्थ किसी के खिलाफ होना नहीं, बल्कि मूल्यों और कर्तव्यपरायणता के साथ समाज को आगे बढ़ाना है।’
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पदयात्रा के दौरान हजारों लोग भगवा ध्वज के साथ चलते दिखे। महिलाएँ, बच्चे, युवा और बुजुर्ग—सभी ने इस आयोजन को सफल बनाने में अपनी भूमिका निभाई। Vrindavan के प्रमुख मंदिरों और रास्तों पर लोगों ने पदयात्रियों का स्वागत फूल वर्षा और जलपान से किया।
एकता ही सनातन की असली ताकत
कार्यक्रम के समापन पर आयोजकों ने घोषणा की कि Sanatan Hindu Ekta Padyatra अब सालाना आयोजन के रूप में देश के अलग-अलग राज्यों में आयोजित की जाएगी। Mathura–Vrindavan में हुए इस अंतिम दिन के कार्यक्रम को सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग देख रहे हैं और इंद्रेश उपाध्याय का भाषण वायरल हो रहा है।
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कुल मिलाकर, यह आयोजन न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक रहा बल्कि समाज की सामूहिक चेतना, सांस्कृतिक गर्व और एकजुटता का मजबूत संदेश भी छोड़ गया।
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