Mirzapur The Movie: जहां खबर केवल सूचना नहीं रहती, बल्कि सत्ता, समाज और सिनेमाई संस्कृति के बड़े संदर्भ में खुद को दर्ज करती है। अली फ़ज़ल ने इम्तियाज़ी अंदाज़ में कह दिया ’Onto our next stop’। मतलब साफ है ‘Mirzapur: The Movie’ की टीम तेज़ी से अगले पड़ाव की ओर बढ़ चुकी है। लेकिन जोधपुर का यह शेड्यूल, यह ठहराव, यह केक-कटिंग की छोटी-सी रस्म… सब मिलकर एक बड़े पर्दे पर लौटती एक दास्तान का संकेत देता है। और किसी भी सिनेमाई ब्रह्मांड की वापसी तभी चर्चित होती है जब दर्शक उसमें अपनी आज की बेचैनी, अपने समय की राजनीति और अपने समाज की धड़कन सुन सकें। मिर्जापुर ने पिछले दो सीज़नों में वही किया था। और अब जब यह दुनिया फिल्म के रूप में आकार ले रही है, तो स्वाभाविक है कि हर एक तस्वीर, हर एक वीडियो और हर एक टिप्पणी सुर्खियां बने।
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जोधपुर शूटिंग नहीं, एक अनुभव
अली फ़ज़ल का इंस्टाग्राम पोस्ट केवल एक कैप्शन नहीं था, एक अनुभव था। उन्होंने लिखा ‘Thank you Jodhpur for showering us with so much love and hospitality… THE FOOD WAS AWESOME.’ यह वही अली हैं, जिन्हें दर्शक गुड्डू पंडित की हिंस्र तैयारी में देखते आए हैं, लेकिन असल ज़िंदगी में वही अभिनेता राजस्थानी आतिथ्य से प्रभावित नज़र आते हैं। और जब वे मज़ाकिया अंदाज़ में कहते हैं ‘This is the worst set of photos and video…’, तो इसमें भी वह अपनापन झलकता है जो किसी टीम को परिवार बना देता है। सुबह 5 बजे की कॉल टाइम वाली थकान भी इस परिवार की हँसी में बदल जाती है।
मिर्जापुर की दुनिया फिर से एकजुट कलाकार
शुक्रवार को अली ने जो तस्वीरें पोस्ट कीं, उनमें पंकज त्रिपाठी, दिव्येंदु, अभिषेक बनर्जी, जितेंद्र कुमार सभी एक ही फ्रेम में थे। यह सिर्फ एक तस्वीर नहीं, फैन्स के लिए एक इमोशनल रीयूनियन था। दर्शकों के लिए मिर्जापुर का मतलब है,
कलीन भइया की खामोश लेकिन ख़तरनाक मौजूदगी
मुन्ना भइया की बेक़ाबू ताक़त
गुड्डू की बदला-भरी यात्रा
और इस बार जुड़े जितेंद्र कुमार की नई परत
यही वजह है कि जैसे ही तस्वीरें आईं, सोशल मीडिया पर हलचल बढ़ गई। ‘120 बहादुर’ का समर्थन सिनेमा की मिट्टी से जुड़ी एक आवाज़ अली फ़ज़ल ने फ़रहान अख़्तर की फिल्म 120 Bahadur का ज़िक्र करते हुए लिखा, ‘7 idhar 120 udhar… Cinema gharon mein 120 Bahadur lagi hai dekhiyega. Aur hum? Humaara zara beyt keejiyega.’ यह टिप्पणी केवल प्रमोशन नहीं थी, यह उस कलाकार का स्वर था जो सिनेमा को परिवार मानता है—जहाँ एक फिल्म दूसरी की प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि साथी होती है।
सेट का माहौल कहानी से भी ज़्यादा गहरी मेहनत
प्रोजेक्ट से जुड़े एक सूत्र का कहना था ‘It was special to have the original cast together for an important sequence. The film will build meaningfully on the world Mirzapur has already created.’ यह वही बात है जिस पर पुण्य प्रसून वाजपेयी अक्सर ज़ोर देते हैं किसी भी कहानी की वापसी तभी सफल होती है जब वह केवल सीक्वेल न हो, बल्कि समय की सच्चाई को नए तरीके से बयान करने की कोशिश हो।
मिर्जापुर के ब्रह्मांड में हिंसा है, राजनीति है, सत्ता की चालें हैं और यही आज की सामाजिक बहसों की केंद्र रेखा भी है। इसलिए इस फिल्म से भी उम्मीद है कि यह सिर्फ एक्शन नहीं, बल्कि उस सत्ता के मनोविज्ञान को भी बयान करेगी जिसने ‘कानून’ और ‘कुर्सी’ के बीच अपना रास्ता बनाया है। फिल्म का अगला पड़ाव एक अनसुलझी पहेली अली ने पूछा ‘Any guesses?’ टीम कहां जा रही है, यह अभी राज़ है। लेकिन यह उत्सुकता वही बनाती है जो मिर्जापुर की पहचान है सस्पेंस, प्रतीक्षा और कहानी की अगली कड़ी का रोमांच।
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मिर्जापुर सिर्फ एक वेब सीरीज़ नहीं रही यह एक सांस्कृतिक संदर्भ बन गई है। और अब जब यह बड़े पर्दे पर आ रही है, तो उम्मीदें भी उतनी ही बड़ी हैं। जोधपुर की रात और ब्लर तस्वीरों का यह जश्न फिल्म की दुनिया का वह सच है जहाँ हर छोटी रस्म के पीछे बड़े सपनों की कहानी छिपी होती है। और दर्शक? वे सिर्फ एक बात कह रहे हैं, ‘गुड्डू भैया… इस बार मिर्जापुर सच में किसके हाथ लगेगा?
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