Kinnar Akhada: धार्मिक अखाड़ों में सत्ता और प्रतिष्ठा की लड़ाई एक बार फिर सुर्खियों में है। महामंडलेश्वर हिमांगी सखी ने एक बार फिर किन्नर अखाड़े में अभिनेत्री से स्वयंभू संत बनी ममता कुलकर्णी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। हिमांगी सखी ने अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी जी महाराज से आग्रह किया है कि ‘इस फर्जी किन्नर अखाड़े पर प्रतिबंध लगाया जाए और इन धर्मद्रोहियों को जेल भेजा जाए।’
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दीक्षा से विवाद तक
कभी बॉलीवुड की ग्लैमरस अभिनेत्री रहीं ममता कुलकर्णी अब खुद को आध्यात्मिक साधिका बताती हैं। लेकिन हिमांगी सखी का कहना है कि ममता को “फर्जी तरीके से” महामंडलेश्वर घोषित किया गया था, जिसका उन्होंने पहले ही विरोध किया था। हिमांगी सखी ने आरोप लगाया-
‘अंडरवर्ल्ड की डॉन की रखैल ममता कुलकर्णी को इन हिजड़ों ने फर्जी ढंग से दीक्षा देकर महामंडलेश्वर बनाया था। धर्म को व्यापार बना देने वाले अखाड़े के संरक्षक समय आने पर उजागर किए जाएंगे।’
यह बयान केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे किन्नर अखाड़े की मान्यता पर सवाल खड़ा करता है।
दाऊद को ‘संत’ बताने का बयान
विवाद तब और गहरा गया जब ममता कुलकर्णी ने दाऊद इब्राहिम को लेकर कहा –
‘दाऊद आतंकवादी नहीं है। मैं उसके साथ नहीं हूं लेकिन उसका आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है।’
इस बयान ने हिंदू संत समाज में तूफान ला दिया। हिमांगी सखी ने इस पर तीखा प्रहार किया –
‘जिस दाऊद ने मुंबई में बमकांड कराया, लाखों हिंदुओं को मरवाया, उसे संत बताना धर्म और देश दोनों का अपमान है। मुंबई पुलिस को तुरंत इसे गिरफ्तार करना चाहिए।’
अखाड़ा परिषद की भूमिका
हिमांगी सखी ने साफ कहा कि अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी को अब निर्णायक कदम उठाना चाहिए। उनका आग्रह है कि ‘ऐसे फर्जी अखाड़ों को प्रतिबंधित किया जाए, जो धर्म के नाम पर अपमान फैला रहे हैं।’ अखाड़ा परिषद के पास ऐसे विवादों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार है, और अब निगाहें परिषद के रुख पर टिकी हैं।
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धर्म बनाम नाटकीयता
यह विवाद सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच नहीं, बल्कि उस बड़े सवाल की ओर इशारा करता है – क्या अखाड़े अब आध्यात्मिक केंद्र हैं या धार्मिक सत्ता के बाज़ार? हिमांगी सखी की भाषा भले तीखी हो, लेकिन उनका तर्क यही है कि ‘सनातन परंपरा की गरिमा को बचाने के लिए फर्जी महामंडलेश्वरों और नकली अखाड़ों का पर्दाफाश जरूरी है।’ ममता कुलकर्णी के ‘दाऊद’ वाले बयान ने आग में घी डालने का काम किया है। हिमांगी सखी का विरोध अब व्यक्तिगत नहीं रहा — यह धर्म, राष्ट्र और अखाड़ा व्यवस्था के आत्म-संरक्षण का सवाल बन गया है। अब देखना यह है कि अखाड़ा परिषद इस ‘धर्म बनाम अभिनय” वाले विवाद में कौन-सा रुख अपनाती है संतों की गरिमा बचाएगी या फिर विवादों की राजनीति जारी रहेगी?
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