Bihar Election 2025 Vote Theft Allegations: मुंबई की हलचल और बिहार की राजनीति दोनों का चुनावी दिन में रिश्ता अचानक गहरा हो जाता है। वजह है Shiv Sena की नेता शायना एनसी का बयान, जो मुंबई से खड़ी होकर पटना की सियासत की धड़कन को पढ़ने का दावा करती हैं। जैसे ही शुरुआती रुझानों ने NDA को बढ़त दी, शायना एनसी ने कहा, ‘ये बिहार की जनता का विश्वास है, विकास का जनादेश है। ‘लेकिन इसी भीड़ में एक और आवाज़ उभरती है RJD के वरिष्ठ नेता सुनील सिंह की। वो कह रहे हैं ये वोट की चोरी है…ये जनादेश नहीं, मशीनों का खेल है।‘ और यहीं से शुरुआत होती है उस बहस की, जो हर चुनाव के दिन उठती है रुझान किसके? जनादेश किसका? और सिस्टम पर सवाल किसका?
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रुझानों की राजनीति
सुबह 9 बजे के बाद जैसे ही ईवीएम से पहली गिनती सामने आती है, पटना से लेकर मुंबई तक राजनीतिक बयानबाज़ी की बाढ़ आ जाती है। NDA के खेमे में जश्न और RJD में बेचैनी-ये एक सामान्य नजारा है। लेकिन TV TODAY BHARAT की नजरें इस ‘जश्न और बेचैनी’ के बीच की खामोशी पर जाती हैं कौन-सा वर्ग, कौन-सा इलाक़ा, कौन-सा जनादेश इन रुझानों के पीछे छिपा बैठा है?
शायना एनसी का दावा और संदेश
शायना एनसी का बयान बीजेपी की रणनीतिक भाषा का हिस्सा लगता है, ‘महागठबंधन की राजनीति अब लोगों को भरोसेमंद नहीं लगती। बिहार बदलाव चाहता है।‘ मुंबई में बैठी शायना एनसी का यह बयान दरअसल उस नैरेटिव की कड़ी है, जिसे भाजपा देशभर में दोहराती आ रही है, ‘स्थिरता बनाम अस्थिरता’, और बिहार के संदर्भ में ‘विकास बनाम जाति समीकरण’।
सुनील सिंह का पलटवार
दूसरी तरफ RJD नेता सुनील सिंह की आवाज़ में गुस्सा भी है और निराशा भी ‘जहां-जहां हम मज़बूत हैं, वहीं EVM में गड़बड़ी? ये संयोग नहीं, साज़िश है। वोट चोरी हुई है।‘ RJD का यह बयान सिर्फ चुनावी तकरार नहीं, बल्कि उस अविश्वास का प्रतीक है जो विपक्ष चुनावी प्रक्रिया पर लगातार जताता रहा है। यानि कहा जाए तो, ‘जब जीत सामने दिखे तो मशीनें ठीक लगती हैं, और जब हार दिखे तो मशीनें संदिग्ध। राजनीति में नैतिकता हमेशा बहुमत के हिसाब से तय होती है।
‘वोट चोरी’ का सवाल सियासत का स्थायी झगड़ा
भारत में हर चुनाव के बाद एक सवाल उठता है, क्या ईवीएम सुरक्षित हैं? सवाल उठाने वाले कहते हैं जनादेश मशीन की मुट्ठी में है। मशीन पर भरोसा करने वाले कहते हैं, देश की लोकतांत्रिक रीढ़ इतनी कमजोर नहीं। लेकिन सच क्या है? सच यह है कि ‘वोट चोरी’ का आरोप आज की राजनीति का सबसे आसान हथियार है, हार को ढकने और नैरेटिव बचाने का।
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बिहार किसका? जनता का
शोर चाहे मुंबई से उठे या पटना से जनादेश कहीं और तय होता है। गिनती की हर टेबल पर बैठे कर्मचारी तय करते हैं कि किस वोट का मूल्य कितना है। लेकिन लोकतंत्र तय करता है, जनता आख़िरी सच है, नेता नहीं, मशीन नहीं, नारे नहीं। रुझान आगे बढ़ेंगे, बयान बदलेंगे, चेहरे बदलेंगे, लेकिन सवाल हमेशा यही रहेगा क्या जनता की जीत हुई या सिर्फ सत्ता की? और यही सवाल, यही ठहराव की पत्रकारिता का मूल है।
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