संगीत से सत्ता तक: नई राह की तलाश
Bhojpuri Stars: बिहार की राजनीति में इस वक्त एक नया रुझान तेजी से उभर रहा है — अब मंच पर गाना गाने वाले कलाकार विधानसभा की कुर्सी तक पहुंचने का सपना देखने लगे हैं। भोजपुरी इंडस्ट्री से लेकर लोकगायकी की दुनिया तक, कई गायक और गायिकाएं चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
पवन सिंह, खेसारी लाल यादव, दिनेश लाल यादव “निरहुआ”, रिंकू ओझा और अन्य कलाकारों की लोकप्रियता अब केवल मंच या पर्दे तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह लोकप्रियता धीरे-धीरे राजनीतिक पहचान में तब्दील हो रही है।

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जनता के बीच पहचान, राजनीति में पूंजी
इन गायकों की सबसे बड़ी ताकत उनकी लोकप्रियता है। गांव-गांव, गली-गली में इनके गीत बजते हैं, और यही इन्हें राजनीतिक लाभ देती है। जब एक गायक चुनावी मंच पर चढ़ता है, तो जनता उसे अपने ‘अपनेपन’ से जोड़ती है। राजनीतिक दलों के लिए भी यह सौदा फायदेमंद साबित होता है। पार्टी को मिलती है एक चर्चित चेहरा, जो भीड़ खींच सकता है और विपक्ष के सामने प्रचार के मोर्चे पर मजबूत साबित होता है। यही वजह है कि लगभग हर पार्टी अब कलाकारों को टिकट देने में दिलचस्पी दिखा रही है।
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भोजपुरी स्टार्स की राजनीति में एंट्री
भोजपुरी सिनेमा के कई बड़े नाम पहले ही राजनीति में उतर चुके हैं।
- मनोज तिवारी दिल्ली से सांसद हैं और बीजेपी के प्रमुख चेहरों में शामिल हैं।
- दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ‘ आजमगढ़ से सांसद हैं।
- खेसारी लाल यादव ने भी कई मौकों पर राजनीति में आने के संकेत दिए हैं।
अब आने वाले विधानसभा चुनाव में पवन सिंह, शिल्पी राज, रिंकू ओझा और नेहा राज जैसे नाम भी अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में हैं।
इन कलाकारों के पास जनसमर्थन तो है ही, सोशल मीडिया पर करोड़ों फॉलोअर्स भी हैं, जो इन्हें बाकी नेताओं की तुलना में ज्यादा चर्चित बनाते हैं।
राजनीति की चमक या प्रचार का तरीका?
कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इन कलाकारों की राजनीति में दिलचस्पी सिर्फ सत्ता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ब्रांड वैल्यू बढ़ाने की रणनीति भी हो सकती है।
राजनीति में उतरने से मीडिया कवरेज बढ़ता है, और यह उनके करियर को नई पहचान देता है। वहीं कुछ कलाकार इसे जनता की सेवा और सामाजिक बदलाव का माध्यम बताते हैं।
वोट और वोटर की मानसिकता
बिहार के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग भावनात्मक जुड़ाव रखता है। जब कोई जाना-पहचाना चेहरा, जिसने उन्हें गीतों से भावनात्मक रूप से जोड़ा, राजनीति में उतरता है, तो मतदाता उसके साथ आसानी से जुड़ जाते हैं।
हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि क्या लोकप्रियता ही नेतृत्व की गारंटी है?
कई बार देखा गया है कि मंच की तालियां और राजनीतिक जिम्मेदारी के बीच भारी फर्क होता है।
चुनौती भी कम नहीं
भले ही कलाकारों के पास भीड़ खींचने की ताकत हो, लेकिन राजनीति की जमीनी हकीकत अलग है। गांव की समस्याएं, जातीय समीकरण, पार्टी संगठन और विकास के मुद्दे—इन सब पर मजबूत पकड़ के बिना चुनाव जीतना आसान नहीं। इतिहास गवाह है कि कई सितारे राजनीति में आए, लेकिन जनता के असली मुद्दों से दूर रह गए।
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संगीत और राजनीति का नया संगम
बिहार में गायकों की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी यह बताती है कि अब सत्ता का सुर बदल रहा है। जहां पहले नेताओं के भाषण से जनता प्रभावित होती थी, वहीं अब एक गीत, एक चेहरा और एक परिचित आवाज भी वोट दिला सकती है।
भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये कलाकार वाकई जनता की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं या यह रुझान भी सिर्फ एक “चुनावी राग” बनकर रह जाएगा।
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