Maithili Thakur election win plan : बिहार की राजनीतिक जमीन आज जितनी गर्म है, उतनी ही बेचैनी लोगों की आँखों में भी साफ दिख रही है। चुनावी नतीजों का सूरज चाहे देर से उगे, लेकिन उम्मीदों की रौशन किरणें पहले ही घर-घर फैल चुकी हैं। इस बार की लड़ाई सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के बीच नहीं, बल्कि उन चेहरों के बीच भी रही, जिन्होंने अपनी पहचान राजनीति से नहीं, जनता के दिलों से बनाई है। उन्हीं चेहरों में एक नाम है मैथिली ठाकुर।
लोकगायिका, सांस्कृतिक दूत और बिहार की बेटी… मैथिली ठाकुर जब अलीनगर से बीजेपी प्रत्याशी बनकर मैदान में उतरीं, तो यह सिर्फ एक चुनावी फैसला नहीं था, बल्कि उस जनता के साथ खड़े होने की उनकी घोषणा थी, जिसने उन्हें अपनी आवाज़ पर सर आंखों पर बिठाया। बिहार चुनाव 2025 की इस भारी भीड़ में मैथिली की मौजूदगी एक अलग रंग भरती है सादा, लेकिन प्रभावशाली। मधुर आवाज़ वाली उस युवा गायिका ने अब ‘विकास’ का गीत छेड़ दिया है।
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मैथिली कहती हैं कि उनके लिए राजनीति मंच नहीं, ज़िम्मेदारी है। और उनका पहला लक्ष्य है ‘हर घर तक सरकार की योजनाएं पहुँचें, बिना किसी दलाल, बिना किसी देरी, और बिना किसी भेदभाव के।’ यही वादा उन्हें बाकी उम्मीदवारों से अलग बनाता है। वो जानती हैं कि अलीनगर हो या दरभंगा का कोई कोना, सरकारी योजनाओं की फाइलों और जमीन पर हकीकत के बीच अक्सर खाई बन जाती है। और उस खाई को पाटने के लिए सिर्फ भाषण नहीं, लगातार संवाद और निरंतरता चाहिए और शायद यही वो चीज है जो उनकी पहचान के सबसे करीब है।
मैथिली ठाकुर की राजनीतिक यात्रा का जन्म लोकगीतों से उपजा है। उनकी आवाज़ ने वर्षों से जिस मिट्टी की सुगंध को दुनिया तक पहुँचाया, अब वही मिट्टी उम्मीद करती है कि यह बेटी अपने क्षेत्र को विकास की नई आवाज़ देगी। मैथिली का कहना है कि चुनाव जीतने का मतलब सत्ता का स्वाद नहीं, बल्कि जनता की परेशानी को अपने दिल तक महसूस करना है। उनके अनुसार, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, महिलाओं की सुरक्षा, युवाओं के रोज़गार के अवसर और किसानों की आय बढ़ाना ये सब उनके एजेंडा में सबसे ऊपर है।
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चुनावी सभा में मैथिली के भाषणों की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे तामझाम नहीं लातीं। न बड़े-बड़े वादों की सजावट, न आंकड़ों की चमक। वो अपनी जनता से उसी भाषा में बात करती हैं, जिससे उनका रिश्ता बरसों पुराना है भावनाओं और विश्वास की भाषा। और यही चीज़ लोगों को उनकी तरफ खींचती है।
इस बार बिहार के चुनाव में सितारों की भरमार है खेसारी लाल यादव हों, पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह हों या रितेश पांडे। लेकिन इन चेहरों के बीच मैथिली ठाकुर की यात्रा सबसे अलग इसलिए लगती है क्योंकि उन्होंने अपने करियर को चमकाने के लिए राजनीति नहीं चुनी। उन्होंने राजनीति को चुना है जनता की आवाज़ को और ज़्यादा ताकत देने के लिए।
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अलीनगर की गलियों में घूमने वाले लोग बताते हैं कि मैथिली के जीतने की हवा सिर्फ चुनावी शोर नहीं, बल्कि युवाओं की उम्मीदों की धड़कन है। स्कूल-कॉलेज के युवा कहते हैं कि मैथिली जैसी युवा नेता उनकी पीढ़ी को समझ सकती हैं क्योंकि वो खुद नई सोच, नई ऊर्जा और नए सपनों की प्रतिनिधि हैं।
आज जब बिहार अपनी नई सरकार का इंतज़ार कर रहा है, एक सवाल धीरे-धीरे उभर रहा है क्या मैथिली ठाकुर की इस सादगी, ईमानदारी और विकास की सोच को जनता अपना जनादेश देगी? अगर हाँ, तो अलीनगर की सुबह सिर्फ एक जीत की नहीं होगी… वो होगी उम्मीदों के नए गीत की शुरुआत।
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