Bihar Elections 2025: बिहार के सीवान से निकली यह खबर पूरे राज्य को हिला देने वाली है। चुनावी माहौल के बीच हुई पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या ने न सिर्फ कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि उस राजनीतिक नैरेटिव को भी झटका दिया है जिसे एनडीए लगातार भुना रहा था—“अब जंगलराज नहीं, सुशासन है।’
हत्या जिसने चुनावी हवा का रुख बदल दिया
सीवान के बीचों-बीच एक पुलिस इंस्पेक्टर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बताया जा रहा है कि इंस्पेक्टर इलाके में रात्रि गश्त पर थे जब बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। घटना स्थल पर खून से सनी वर्दी और फटी कैप, बिहार की “कानून व्यवस्था” की असल तस्वीर पेश कर रही है।
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पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है। वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचे, पर जनता का गुस्सा शांत नहीं हुआ। सवाल उठ रहे हैं—जब पुलिस खुद असुरक्षित है, तो आम आदमी किस पर भरोसा करे?
एनडीए की राजनीति और ‘जंगलराज’ का तर्क
चुनावी मंचों से एनडीए नेताओं ने लगातार यही कहा – ‘हमने बिहार को 20 साल पहले के जंगलराज से बाहर निकाला।” लेकिन सीवान की यह घटना जैसे उस बयानबाज़ी पर एक तीखा व्यंग्य बन गई है। लोग पूछ रहे हैं—अगर जंगलराज आरजेडी का था, तो यह क्या है? जब पुलिसकर्मी तक खुलेआम मारे जा रहे हों, तो इसे कौन सा “सुशासन” कहा जाएगा? राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह घटना विपक्ष को नया हथियार देगी। आरजेडी प्रवक्ता ने बयान दिया, “अब पता चल गया कि असली जंगलराज कौन लाया है।
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जनता की नाराज़गी और सोशल मीडिया का सैलाब
घटना के कुछ ही घंटों में #SiwanMurder और #BiharLawAndOrder ट्विटर (X) पर ट्रेंड करने लगे। लोगों ने लिखा—
‘जब पुलिस असुरक्षित है, जनता खुद को कैसे सुरक्षित महसूस करे?’
’20 साल पुराना जंगलराज याद दिलाने वालों को पहले 2025 का सीवान देखना चाहिए।’
यानी, बिहार की जनता सिर्फ राजनीतिक भाषण नहीं, ज़मीनी हकीकत देख रही है।
सरकार के लिए मुश्किल सवाल
मुख्यमंत्री से लेकर गृह विभाग तक इस हत्या पर बयान आए, लेकिन जनता चाहती है जवाब—
- आखिर पुलिस को सुरक्षा देने वाला कौन है?
- अपराधी इतने बेखौफ कैसे हो गए?
- क्या प्रशासन सिर्फ चुनावी तैयारियों में व्यस्त है और अपराधी आज़ाद घूम रहे हैं?
यह वही बिहार है, जहां सरकार हर मंच से दावा करती है कि “कानून का राज कायम है।” लेकिन सीवान की सड़कों पर बहा इंस्पेक्टर का खून इन दावों को खोखला बना रहा है।
चुनावी असर और राजनीतिक कटाक्ष
चुनाव नज़दीक हैं, और हर घटना का राजनीतिक अर्थ निकलता है। एनडीए जिस “कानून व्यवस्था” को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही थी, वही अब उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन सकती है। विपक्ष पहले से बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर हमलावर था—अब इस हत्या ने उसे नैतिक बढ़त दे दी है। आरजेडी और कांग्रेस नेताओं ने कहा—
‘अगर यही सुशासन है, तो जनता को पुराना जंगलराज ही बेहतर लगने लगेगा।’
सुशासन का आईना टूटा
सीवान की यह घटना सिर्फ एक पुलिसकर्मी की हत्या नहीं है—यह उस “सुरक्षा” के भ्रम का अंत है, जिसे राजनीतिक प्रचार में परोसा जा रहा था।
बिहार में अपराध का ग्राफ फिर बढ़ रहा है, और जनता अब यह महसूस करने लगी है कि नारे और पोस्टर भले बदल गए हों, पर डर वही है जो बीस साल पहले था।
एनडीए के लिए यह एक चेतावनी है—
अगर “सुशासन” सिर्फ भाषण में रहेगा और सड़क पर खून बहता रहेगा, तो जनता अगली बार वोट की भाषा में जवाब देगी।
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