Bansuri Swaraj statement: पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में हुए सामूहिक बलात्कार के मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया। पीड़िता की पीड़ा पर अभी समाज की संवेदना थमी भी नहीं थी कि सियासत की लपटें तेज़ हो गईं। भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज ने इस मामले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा,
“मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस बलात्कार को उचित ठहराती हैं। वह कहती हैं कि महिलाओं को देर रात बाहर नहीं निकलना चाहिए। टीएमसी अब प्रतिगामी मानसिकता का पर्याय बन चुकी है।”
ये बयान जितना राजनीतिक था, उतना ही सामाजिक सवाल भी खड़ा करता है — क्या सत्ता में बैठी सरकारें अब अपराध पर शर्मिंदा होने के बजाय अपनी स्थिति बचाने में ज़्यादा दिलचस्प हैं?
वीडियो देंखे
अपराध बनाम राजनीति: कौन ज़िम्मेदार?
बांसुरी स्वराज का आरोप केवल एक नेता पर नहीं, बल्कि उस सोच पर है जो अपराध को पीड़िता की गलती बताकर खुद को बचाने की कोशिश करती है। अगर कोई महिला रात में बाहर निकलती है, तो क्या उसका बलात्कार “समय” की वजह से सही ठहराया जा सकता है? यह सोच उस पुरानी मानसिकता की याद दिलाती है, जहां “इज़्ज़त” का बोझ हमेशा महिलाओं के कंधों पर डाला जाता है, और अपराधी को समाज की साज़िश के पीछे छिपा दिया जाता है।
ममता बनर्जी की राजनीति पर सवाल
ममता बनर्जी लंबे समय से बंगाल की राजनीति में महिला सशक्तिकरण का चेहरा बनने की कोशिश करती रही हैं। लेकिन बांसुरी स्वराज के बयान के बाद ये सवाल ज़रूर उठता है कि क्या सत्ता का बोझ संवेदना को कुंद कर देता है? अगर मुख्यमंत्री का बयान सचमुच महिलाओं को देर रात बाहर न निकलने” की सलाह वाला था, तो यह प्रशासनिक संवेदनशीलता नहीं बल्कि नैतिक पुलिसिंग कहलाएगी। और यही बात भाजपा सांसद ने अपने बयान में उठाई कि, टीएमसी अब उस सोच का प्रतिनिधित्व करने लगी है जो महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित देखना चाहती है।
राजनीति का नज़रिया बनाम समाज की सच्चाई
हर बार जब कोई जघन्य अपराध होता है, तो सरकारें यह साबित करने में लग जाती हैं कि या तो अपराध “राजनीतिक साज़िश” है या “स्थानीय घटना। लेकिन हकीकत यह है कि हर बलात्कार केवल अपराध नहीं, बल्कि समाज की सोच का आईना होता है। ममता बनर्जी की सरकार पर पहले भी महिला सुरक्षा के सवाल उठ चुके हैं। कूचबिहार से लेकर सागरद्वीप तक, कई बार यह कहा गया कि पुलिस “राजनीतिक निर्देशों” के अधीन काम करती है। बांसुरी स्वराज ने इसी पृष्ठभूमि में ममता सरकार पर निशाना साधा — यह कहते हुए कि “राज्य में अपराधी सुरक्षित और महिलाएँ असुरक्षित हैं।”
महिला सुरक्षा का राजनीतिक पैमाना
यह दुर्भाग्य है कि महिला सुरक्षा अब एक चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है। जब कोई घटना होती है, तो विपक्ष सरकार पर हमला करता है, सरकार विपक्ष पर “राजनीतिक लाभ” लेने का आरोप लगाती है, और बीच में न्याय की पुकार दब जाती है। दुर्गापुर की घटना भी उसी चक्रव्यूह में फंसी दिखती है। एक ओर भाजपा इसे “राज्य की कानून-व्यवस्था की विफलता बता रही है, तो दूसरी ओर टीएमसी इसे “राजनीतिक रंग” देने की कोशिश कर रही है।
अंत में सवाल वही: कब तक?
बांसुरी स्वराज का बयान भले ही राजनीतिक हो, लेकिन उसके पीछे की पीड़ा असली है कब तक देश की महिलाएं यह सुनेंगी कि “उन्हें देर रात बाहर नहीं निकलना चाहिए ? कब तक अपराधी से ज़्यादा समाज महिलाओं के पहनावे, वक्त और चलने के ढंग पर सवाल करेगा? और कब तक सत्ता में बैठे लोग हर घटना पर अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए बयानबाज़ी करते रहेंगे?
यानि कह सकते हैं —
“जब सत्ता संवेदनहीन हो जाती है, तो इंसाफ की आवाज़ सियासी शोर में खो जाती है।” दुर्गापुर की घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की वह दरार है जहाँ इंसानियत की आवाज़ राजनीति की दीवारों में गुम हो जाती है।
Follow Us: YouTube| Sanatan Guru Gyan | Breaking Hindi News Live | Website: Tv Today Bharat| X | FaceBook | Quora| Linkedin | tumblr | whatsapp Channel | Telegram
