Ranchi Protest News: रांची की सड़कों पर एक और सियासी प्रदर्शन देखने को मिला। वजह है—आदिवासी नेता सूर्या हांसदा का एनकाउंटर। सवाल यह है कि क्या वाकई सूर्या हांसदा एक खतरनाक नक्सली थे? या फिर यह सिर्फ़ सत्ता और प्रशासन की ताक़त दिखाने का एक और उदाहरण है?
झारखंड की राजनीति इस समय उबाल पर है। बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया है। विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने खुद इस प्रदर्शन की अगुवाई की। उनका साफ कहना है कि सूर्या हांसदा का एनकाउंटर संदिग्ध है और सरकार आदिवासियों के साथ अन्याय कर रही है।सोचिए, जब राज्य का सबसे बड़ा विपक्षी दल खुलकर सड़क पर उतर आए, तो इसका मतलब है कि कहीं न कहीं भरोसे का संकट गहराता जा रहा है।
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कौन थे सूर्या हांसदा?
सूर्या हांसदा का नाम आदिवासी इलाकों में जाना-पहचाना था। उन्हें स्थानीय आदिवासी समुदाय का नेता माना जाता था। लेकिन पुलिस का कहना है कि वो नक्सली गतिविधियों में शामिल थे। अब सवाल उठता है—अगर वो इतने बड़े अपराधी थे, तो क्या उन्हें अदालत में पेश नहीं किया जा सकता था? क्या न्यायपालिका का रास्ता छोड़कर सीधे मुठभेड़ का रास्ता चुनना ही न्याय है? यहीं से कहानी बदल जाती है।
बीजेपी का आक्रोश
रांची में हुए विरोध प्रदर्शन में बीजेपी नेताओं ने साफ कहा—यह सिर्फ एक व्यक्ति की मौत का मामला नहीं है, यह आदिवासी समाज की अस्मिता पर हमला है। बाबूलाल मरांडी ने कहा—“आदिवासी समाज के बेटे की हत्या हुई है। यह एनकाउंटर नहीं, यह लोकतंत्र की हत्या है।”
उनका आरोप है कि राज्य सरकार लगातार आदिवासियों के सवालों को दबा रही है। और अब सूर्या हांसदा की मौत ने आग में घी डालने का काम कर दिया है।
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सत्ता बनाम विपक्ष
झारखंड की राजनीति में हमेशा से आदिवासी पहचान एक बड़ा मुद्दा रही है। हेमंत सोरेन की सरकार खुद को आदिवासियों का असली संरक्षक बताती है। लेकिन बीजेपी ने इस एनकाउंटर को मुद्दा बनाकर सरकार पर ही सवाल खड़े कर दिए।
यहां तस्वीर साफ़ है—
- विपक्ष कह रहा है कि सरकार आदिवासियों को कुचल रही है।
- सरकार का कहना है कि कानून-व्यवस्था के खिलाफ किसी को बख्शा नहीं जाएगा।
मगर, इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या न्याय का रास्ता गोली से होकर जाता है?
आदिवासियों की पीड़ा
झारखंड का आदिवासी समाज वैसे ही लंबे समय से विकास और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है। कभी ज़मीन का सवाल, कभी वन अधिकार का मुद्दा, कभी जल-जंगल-जमीन की लड़ाई। और अब जब उनके एक नेता की मौत मुठभेड़ में होती है, तो स्वाभाविक है कि गुस्सा और आक्रोश फूटेगा।
बीजेपी इसी आक्रोश को आवाज़ दे रही है। प्रदर्शनकारियों के हाथों में तख्तियां थीं—
“आदिवासियों के साथ अन्याय बंद करो।”
“सूर्या हांसदा को न्याय दो।”
यह नारे झारखंड की सियासत में नई गूंज पैदा कर रहे हैं।
आगे का रास्ता
सवाल यही है कि अब आगे क्या होगा?
क्या सरकार इस मामले की न्यायिक जांच कराएगी?
क्या सच सामने आएगा कि सूर्या हांसदा नक्सली थे या सिर्फ़ एक आदिवासी नेता जिन्हें खामोश कर दिया गया? बाबूलाल मरांडी और बीजेपी ने साफ कर दिया है कि वे इसे आसानी से मुद्दा खत्म नहीं होने देंगे। आंदोलन और तेज़ होगा। झारखंड का यह एनकाउंटर सिर्फ एक व्यक्ति की मौत का मामला नहीं है। यह उस सवाल की गूंज है—आख़िर आदिवासियों के साथ न्याय कब होगा?
आज रांची की सड़कों पर जो नारे गूंज रहे थे, वो सिर्फ सूर्या हांसदा के लिए नहीं थे, वो पूरे आदिवासी समाज के लिए थे। और यही झारखंड की राजनीति को आने वाले दिनों में और भी गरमा देगा।
