दिल्ली के दिल पर हमला, और जांच का नया सिरा
Delhi Red Fort Blast Case Imam Irfan: लाल किले के पास धमाका राजधानी की दीवारों के भीतर छिपे उस ख़तरे का प्रतीक, जो बारूद से नहीं बल्कि विचारों से पनपता है। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, एजेंसियों ने एक ऐसे नाम की परतें खोलीं, जो न तो किसी सीमा पार कैंप से आया था, न ही किसी जिहादी ट्रेनिंग से। वह था इमाम इरफान, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज का पूर्व पैरामेडिकल कर्मचारी, और अब देश के भीतर फैले कट्टरपंथी नेटवर्क का मास्टरमाइंड।
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कौन है ‘इमाम इरफान’? शिक्षा के नाम पर वैचारिक ज़हर फैलाने वाला
इरफान अहमद उर्फ मुफ्ती इरफान, जम्मू-कश्मीर के शोपियां का निवासी, नौगम मस्जिद का इमाम और कभी श्रीनगर के जीएमसी में पैरामेडिकल कर्मचारी। पर उसकी पहचान सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं थी — वह छात्रों की सोच बदलने वाला ‘मौलवी इंफ्लुएंसर’ बन चुका था।
टेलीग्राम, थ्रीमा और डार्क वेब चैनलों पर उसका नाम ‘अल-इरफानी’ के तौर पर सामने आता है। जांच में खुलासा हुआ कि वह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) की विचारधारा का प्रचारक था, जो मेडिकल छात्रों को ‘इलाज से जिहाद’ की तरफ मोड़ने का मिशन चला रहा था।
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मेडिकल कॉलेज बना कट्टरपंथ की प्रयोगशाला
सरकारी मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर जहां कभी इलाज की पढ़ाई होती थी, वहां इरफान ने ‘विचारों का संक्रमण’ फैलाया। वह छात्रों को जेईएम के वीडियो दिखाता, उनके समूहों में वैचारिक बहसें छेड़ता और धीरे-धीरे उन्हें “जुल्म के खिलाफ हथियार उठाने” की मानसिकता में ढालता।
पुलिस के अनुसार, उसके नेटवर्क में करीब दर्जनभर युवा डॉक्टर शामिल थे, जो अब फरीदाबाद और दिल्ली में जेईएम के लिए काम कर रहे थे।
इरफान ने न सिर्फ उन्हें विचारों से संक्रमित किया बल्कि पाकिस्तान-स्थित हैंडलर्स से भी जोड़ दिया यही से फरीदाबाद मॉड्यूल की जड़ें फूटीं।
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शोपियां से नौगम तक ‘मौलवी इरफान’ का फैलता असर
शोपियां का यह मौलवी अपने उपदेशों में धर्म नहीं, ‘जिहाद’ का मतलब बदल रहा था। नौगम मस्जिद में उसके ख़ुत्बे (भाषण) युवाओं को जेईएम के वीर शहीदों की कहानियों में लपेट देते थे। टेलीग्राम चैनल पर उसका संपर्क अफगानिस्तान स्थित हैंडलर उमर बिन खत्ताब से था, और उसी के इशारे पर इरफान ने भारत में महिलाओं की ‘जमात अल-मुमिनात’ शाखा शुरू करने की योजना बनाई जो डॉक्टर शाहीन सईद जैसी प्रोफेशनल महिलाओं के जरिए रेडिकलाइजेशन करती थी।
‘व्हाइट-कॉलर टेरर’ डॉक्टरों का आतंकी नेटवर्क
फरीदाबाद का अल-फलाह मेडिकल कॉलेज जहां आमतौर पर भविष्य के डॉक्टर तैयार होते हैं, वहीं तैयार हुआ ‘व्हाइट-कॉलर टेरर नेटवर्क’।
डॉ. मुजम्मिल शकील, डॉ. आदिल रठेर और डॉ. उमर मोहम्मद जैसे नाम इस नेटवर्क का हिस्सा बने। जांच में सामने आया कि इस मॉड्यूल ने करीब 2,900 किलो विस्फोटक, AK-47 राइफलें, और IED मटेरियल जुटाया था। इरफान इस पूरी साजिश का ब्रेन था वह विचार देता था, बाकी उसका ‘डॉक्टर गैंग’ लॉजिस्टिक्स संभालता था। दिल्ली ब्लास्ट में इस्तेमाल की गई कार इसी मॉड्यूल के जरिए आई थी एक ऐसा विस्फोट जिसने 12 जिंदगियों को निगल लिया।
गिरफ्तारी और खुलासे: आतंक का मेडिकल चेहरा
19 अक्टूबर 2025 — नौगम में जेईएम के पोस्टर मिलने से कहानी शुरू हुई। कुछ ही दिनों में तीन ओजीडब्ल्यू (Over Ground Worker) आरिफ निसार डार, यासिर-उल-अशरफ, और मकसूद अहमद डार की गिरफ्तारी हुई। जैसे-जैसे फोन और चैट रिकॉर्ड खंगाले गए, ‘इमाम इरफान’ का नाम उभरकर सामने आया। शोपियां से गिरफ्तार किए जाने के बाद भी वह चुप्पी साधे रहा, लेकिन जब उसके फोन से जेईएम प्रोपगैंडा चैनल्स और पाकिस्तान-स्थित हैंडलर्स के चैट मिले जांच एजेंसियों को पूरा तंत्र समझ आ गया।
कट्टरपंथ की अर्थव्यवस्था, चैरिटी के नाम पर फंडिंग
इरफान का नेटवर्क धार्मिक चैरिटी के नाम पर पैसे जुटाता था। मेवात के मौलवी हाफिज मोहम्मद इश्तियाक, गंदरबल के जमीर अहमद अहंगर दोनों इस फंडिंग चैनल के अहम किरदार थे। जकात और “रिलीफ” के नाम पर जुटाए गए ये पैसे वास्तव में हथियार और विस्फोटक खरीदने में इस्तेमाल होते थे। यह नेटवर्क जम्मू-कश्मीर से हरियाणा, यूपी, दिल्ली तक फैला हुआ था यानी विचार और धन, दोनों समानांतर चल रहे थे।
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NIA की जांच और पैन-इंडिया खतरा
जैसे-जैसे केस आगे बढ़ा, जेके पुलिस और एनआईए को यह एहसास हुआ कि यह कोई लोकल मॉड्यूल नहीं, बल्कि पैन-इंडिया नेटवर्क है — जहां डॉक्टर, प्रोफेसर, और मौलवी मिलकर वैचारिक जिहाद को हवा दे रहे हैं।एनआईए ने UAPA और Arms Act के तहत केस दर्ज किया है।
कई राज्यों में रेड जारी हैं। सवाल अब सिर्फ इतना है कितने और इरफान इस सिस्टम में हैं, जो कलम की आड़ में ‘क़त्ल का विचार’ बेच रहे हैं?
विचार का विस्फोट असली खतरा कहां है?
यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति या एक ब्लास्ट की नहीं है यह उस विचार की कहानी है, जो धीरे-धीरे शिक्षा और धर्म के बीच की रेखा मिटा रहा है। जहां इरफान जैसे लोग मेडिकल संस्थानों को मस्जिद में और छात्रों को ‘मुजाहिदीन’ में बदल रहे हैं। यह आतंक की नई परिभाषा है जहां हथियार की जगह “ज्ञान” को हथियार बना दिया गया है।
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अब सवाल यह नहीं कि कौन है इरफान सवाल है कि हम तैयार हैं या नहीं
दिल्ली का धमाका सिर्फ राजधानी पर हमला नहीं था, बल्कि देश के शैक्षिक तंत्र पर एक चेतावनी था। कट्टरपंथ अब सीमाओं से नहीं, क्लासरूम से फैल रहा है। इरफान जैसे लोग “शिक्षक” बनकर विचारों में बारूद भर रहे हैं और जब तक समाज इस ज़हर को पहचान नहीं लेता, तब तक हर डॉक्टर, हर स्टूडेंट, हर नागरिक सवाल के घेरे में रहेगा। दिल्ली ब्लास्ट केस केवल सुरक्षा का मामला नहीं, बल्कि विचार और शिक्षा की पवित्रता पर हमला है। मौलवी इरफान ने “इल्म” की ताकत को जिहाद में बदला और यही आज की सबसे खतरनाक लड़ाई है, जो बारूद से नहीं, दिमाग से लड़ी जा रही है।
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