Bhagwant Mann Press Conference: पंजाब में आई हालिया तबाही ने न सिर्फ़ गांव-गांव की ज़िंदगी अस्त-व्यस्त कर दी है बल्कि सियासत में भी एक नई हलचल पैदा कर दी है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की और राज्य की स्थिति का विस्तार से ब्यौरा दिया। यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक अपडेट नहीं था, बल्कि हर उस किसान, मज़दूर और परिवार की आवाज़ थी जो इस आपदा से जूझ रहा है।

मुख्यमंत्री ने साफ़ कहा कि पंजाब की हालत बेहद विकट है गांव डूब गए, हज़ारों लोग बेघर हो गए, रोज़गार छिन गया, स्कूल-बच्चों की किताबें तक बह गईं, सैकड़ों सड़कें और पुल नष्ट हो गए। यह तस्वीर न सिर्फ़ आंकड़ों में बल्कि जमीनी सच्चाई में झलकती है।
केंद्र की ओर से शुरुआती मदद
अमित शाह ने मुलाक़ात के दौरान केंद्र की तरफ़ से शुरुआती मदद का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि पंजाब की पीड़ा को समझते हुए ₹1600 करोड़ रुपये का राहत पैकेज दिया जाएगा। हालांकि इसे खुद गृहमंत्री ने टोकन अमाउंट बताते हुए साफ़ कर दिया कि आने वाले दिनों में और मदद की जाएगी।
यह राहत राशि प्रभावित गांवों में पुनर्वास, अस्थायी आवास, और किसानों को तुरंत मदद पहुंचाने के लिए इस्तेमाल होगी। लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह शुरुआती मदद पंजाब की पीड़ा को सचमुच कम कर पाएगी या यह सिर्फ़ एक औपचारिक ऐलान है?
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जमीनी स्तर पर राज्य सरकार की पहल
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठी है। उन्होंने राहत कार्य का ब्यौरा देते हुए कहा कि,खेतों से रेत-मलबा हटाने का काम शुरू हो गया है, ताकि किसान अपनी ज़मीन फिर से उपजाऊ बना सकें।
हर किसान को मुफ्त बीज दिए जाएंगे ताकि नई फसल बोई जा सके और उनका रोज़गार दोबारा पटरी पर लौटे। डूबे स्कूलों को फिर से तैयार करने और किताबों जैसी ज़रूरी सामग्री छात्रों तक पहुँचाने के प्रयास तेज़ किए गए हैं। मान का दावा था कि “हम सिर्फ़ दिखावा नहीं कर रहे। यह पंजाब के भविष्य की लड़ाई है और इसमें हमें सबके सहयोग की ज़रूरत है।”
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“रंगला पंजाब फंड” और विपक्ष की नाराज़गी
आपदा राहत के बीच ही सियासत ने भी करवट ली। सरकार ने एलान किया कि “रंगला पंजाब फंड” से भी राहत और पुनर्निर्माण का खर्च उठाया जाएगा। विपक्ष, ख़ासकर बीजेपी विधायक अश्विनी शर्मा ने इस पर सवाल खड़े कर दिए।
अश्विनी शर्मा ने आरोप लगाया कि यह फंड पारदर्शी तरीके से इस्तेमाल नहीं हो रहा। उन्होंने पूछा, “आख़िर इस फंड का पैसा कहां जा रहा है? क्या वास्तव में पीड़ितों तक मदद पहुंच रही है या यह भी चुनावी प्रचार का साधन बन रहा है?”
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मुख्यमंत्री ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि ऐसे वक़्त में राजनीति करने के बजाय सभी दलों को मिलकर प्रभावित जनता के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।
ज़िंदा सवाल: कितनी जल्दी लौटेगी ज़िंदगी पटरी पर?
सवाल यही है कि क्या ₹1600 करोड़ की शुरुआती मदद और राज्य सरकार की पहलें इतनी भारी तबाही के बाद जनता की तकलीफ़ कम कर पाएंगी?
प्रभावित गावों को फिर से बसाने में सालों लग सकते हैं।
खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए सिर्फ़ बीज नहीं, बल्कि मलबा हटाने और मिट्टी सुधारने पर बड़े पैमाने पर खर्च होगा। सड़कों और पुलों का पुनर्निर्माण विकास की रफ़्तार तय करेगा।
केंद्रीय राहत से उम्मीदें हैं, लेकिन पंजाब की तकलीफ़ का पैमाना कहीं बड़ा है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री मान ने बार-बार दोहराया कि यह लड़ाई लंबी है और पंजाब को पूरी तरह अकेला नहीं छोड़ा जा सकता।
इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस ने यह साफ़ कर दिया कि आपदा सिर्फ़ प्रशासनिक आंकड़ा नहीं होती—यह लोगों की ज़िंदगी और आने वाली पीढ़ियों की उम्मीदों से जुड़ी लड़ाई है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की भूमिका अहम है।
पर सवाल अब भी वही है कि राहत पैकेज और राजनीतिक बयानबाज़ी के बीच असली राहत कब और कैसे मिलेगी? पंजाब का दर्द है कि खेत-बाग़ बह गए, घर उजड़ गए। और उम्मीद यही है कि सरकारें अंततः वादों से आगे बढ़कर ज़मीनी सच्चाई में राहत पहुंचाएंगी।
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