News Delhi: ‘हम नहीं भूलेंगे, न माफ करेंगे…’ यह सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि उन हज़ारों परिवारों की चीख है जो 1984 के सिख विरोधी दंगों की आग में सब कुछ खो बैठे। 41 साल बीत गए, लेकिन दर्द आज भी जस का तस है। राजधानी के तिलक नगर, त्रिलोकपुरी, सुल्तानपुरी, और मंगोलपुरी जैसे इलाकों में आज भी हर गुरुपर्व पर मोमबत्तियाँ नहीं, आंसू जलते हैं।
दंगे के दौरान अपने पिता को खो चुकी अमृत कौर कहती हैं, ‘मेरे सामने पापा को ज़िंदा जला दिया गया था, लेकिन आज तक इंसाफ़ अधूरा है। जिन लोगों ने हमारे घरों को लूटा, हमें मारा, वे या तो राजनीति में हैं या आराम से ज़िंदगी जी रहे हैं।’
कांग्रेस पार्टी पर उंगलियाँ बार-बार उठती हैं। पीड़ितों का आरोप है कि उस समय सत्ता में बैठी कांग्रेस सरकार ने न सिर्फ़ हालात को नियंत्रित करने में विफलता दिखाई, बल्कि कई नेताओं पर भीड़ को भड़काने के आरोप लगे। आज जब कांग्रेस ‘न्याय और समानता” की बात करती है, तो पीड़ित परिवारों के ज़ेहन में वही पुरानी तस्वीरें घूम जाती हैं, जलते घर, सड़कों पर बिखरी लाशें, और हवा में घुला धुआं।
सिख समुदाय आज भी हर साल 31 अक्टूबर और 1 नवंबर के दिन अपने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए यही मांग करता है ‘इंसाफ़ दो, वरना यह इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।’ कई मामलों में कोर्ट ने सज़ा सुनाई है, लेकिन सैकड़ों केस अब भी लंबित हैं। दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सख़्त टिप्पणी की है, पर न्याय की रफ़्तार अब भी धीमी है।
READ MORE: काम न करने वालों पर फूटा गडकरी का गुस्सा, ’15 लाख करोड़ हैं, लेकिन खर्च नहीं कर पा रहा हूं…’
दंगों में अपने तीन भाइयों को खो चुके बलदेव सिंह कहते हैं, ‘राजनीति बदल गई, सरकारें आईं-गईं, पर हमारे जख्म वहीं हैं। हमें सिर्फ़ मुआवज़ा नहीं चाहिए, हमें जवाब चाहिए , आखिर हमारे अपनों की हत्या किसने करवाई?’
आज, जब नई पीढ़ी इन कहानियों को सुनती है, तो विश्वास नहीं कर पाती कि देश की राजधानी में कभी ऐसा हुआ था। लेकिन तिलक नगर की गलियों में अब भी दीवारों पर उस वक्त के निशान मौजूद हैं। कई घरों की दीवारें अब भी उस जलन की गवाही देती हैं जो न्याय से वंचित लोगों के दिलों में सुलग रही है।
READ MORE: श्रद्धालुओं की आस्था पर भारी पड़ा हादसा, 9 की मौत, दो बच्चे भी शामिल
राजनीतिक गलियारों में फिर से चर्चा है क्या अब भी कोई माफ़ी बाकी है? क्या अब भी कोई सच्चाई दबी हुई है? लेकिन सिख समाज का एक ही जवाब है , ‘हम माफ़ नहीं करेंगे, जब तक न्याय पूरा नहीं होता।’
1984 की वह आग भले ही बुझ गई हो, लेकिन उसकी लपटें अब भी इंसाफ़ की राह रोशन कर रही हैं। शायद यही वजह है कि जब भी सियासत समानता” या ‘शांति’ का जिक्र करती है, तब देश के कोने-कोने से एक आवाज़ उठती है । ‘1984 को न भूलेंगे, न माफ करेंगे क्योंकि , यह सिर्फ़ इतिहास नहीं, हमारी आत्मा का ज़ख्म है।’
Follow Us: YouTube| TV TODAY BHARAT LIVE | Breaking Hindi News Live | Website: Tv Today Bharat| X | FaceBook | Quora| Linkedin | tumblr | whatsapp Channel | Telegram
