Bageshwar Dham: भारत की आध्यात्मिक भूमि पर जब भी कोई संत या धर्माचार्य कुछ कहता है, तो वह केवल शब्द नहीं होते, वह समाज की आत्मा की पुकार होते हैं। बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश महंत धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने हाल ही में जो बात कही, उसने पूरे देश में एक नई चर्चा को जन्म दिया। उन्होंने कहा, “हम सत्य के पूजक हैं, किसी व्यक्ति के नहीं।” यह वाक्य जितना सरल है, उतना ही गूढ़ और गहराई से भरा हुआ भी।
मोदी के प्रति सम्मान, पर सत्य के प्रति समर्पण
धीरेंद्र शास्त्री का यह बयान उस समय आया, जब देश में राजनीति, धर्म और राष्ट्रवाद को लेकर चर्चाएं अपने चरम पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों, उनकी राष्ट्र सेवा और उनके प्रति जनता की भावनाएँ सभी जानते हैं। लेकिन जब बागेश्वर धाम के पीठाधीश ने पीएम मोदी के प्रति अपने हृदय की बात कही, तो उसमें न किसी राजनीतिक झुकाव की झलक थी और न किसी विरोध की बल्कि एक संतुलित सत्यवाणी थी।

उन्होंने कहा —
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लिए हमारे मन में आदर है, लेकिन हम किसी व्यक्ति विशेष के नहीं, बल्कि सत्य, धर्म और राष्ट्र के पूजक हैं। हमारा धर्म किसी दल से नहीं, बल्कि इस देश की आत्मा से जुड़ा है।” यह कथन केवल एक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक संत का दर्शन था जिसमें व्यक्ति पूजा की जगह सत्य और राष्ट्रधर्म सर्वोपरिहै।
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राजनीति से ऊपर उठी आवाज़
आज के समय में जब हर बात को राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है, ऐसे में धीरेंद्र शास्त्री की यह बात समाज को सोचने पर मजबूर करती है। उन्होंने अपने शब्दों में उस “मर्यादा” की याद दिलाई जो हमारे संतों, ऋषियों और मुनियों ने सदा निभाई है, कि सत्ता का समर्थन तभी करें जब वह सत्य के मार्ग पर चले, और विरोध भी तभी करें जब वह धर्म से भटके।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका कोई व्यक्तिगत एजेंडा नहीं है। उनका मकसद है “जनजागरण और धर्मरक्षा”। शास्त्री जी के अनुसार, आज भारत का पुनर्जागरण तभी संभव है जब हर नागरिक व्यक्ति के बजाय सत्य के सिद्धांत का अनुयायी बने।
धीरेंद्र शास्त्री ने अपने बयान में यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं — राम मंदिर निर्माण, कश्मीर से धारा 370 का हटना, संस्कृति और गौरव की पुनर्स्थापना — लेकिन उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि “किसी भी नेता या व्यक्ति को पूजनीय बनाना सही नहीं, पूजनीय केवल राष्ट्रधर्म होना चाहिए।”
उन्होंने पीएम मोदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा —
“मोदी जी का काम देश के लिए प्रेरणास्रोत है, परंतु जब तक कोई व्यक्ति सत्य पर अडिग रहेगा, हम उसके साथ रहेंगे। जब वह सत्य से भटकेगा, हम उससे भी प्रश्न पूछेंगे — क्योंकि हमारा धर्म यही सिखाता है कि व्यक्ति नहीं, विचार पूजनीय है।”यह संतुलित वक्तव्य बताता है कि एक संत कैसे देश की राजनीति से ऊपर रहकर भी राष्ट्र के मार्गदर्शन में भूमिका निभा सकता है।
इतिहास में देखा जाए तो भारत के संतों ने हमेशा सत्ता को दिशा दी है, न कि सत्ता के चरणों में झुके हैं। चाहे वह चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य का युग हो या स्वामी विवेकानंद का, हर युग में संतों ने सत्ता को सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा दी।
धीरेंद्र शास्त्री उसी परंपरा के प्रतिनिधि हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि “हमारा धर्म सत्ता से बड़ा है, और हमारा राष्ट्र किसी दल की बपौती नहीं।”
व्यक्ति से ऊपर विचार, सत्ता से ऊपर सत्य
उनकी यह सोच बताती है कि आध्यात्मिक नेतृत्व तभी सार्थक है जब वह निर्भीक हो, निष्पक्ष हो और सत्य के साथ खड़ा हो। धीरेंद्र शास्त्री के अनुसार, “जब तक हम व्यक्ति की नहीं, विचार की पूजा करेंगे, तब तक भारत आत्मनिर्भर और आत्मजाग्रत रहेगा।” उन्होंने युवाओं से भी अपील की कि किसी व्यक्ति या पार्टी की अंधभक्ति न करें, बल्कि यह देखें कि कौन सत्य और राष्ट्रहित में कार्य कर रहा है।
उन्होंने कहा —
“सत्य ही सनातन है, और जो सत्य के साथ खड़ा है, वही सच्चा राष्ट्रभक्त है।” यह संदेश केवल राजनीतिक विमर्श तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना को भी दिशा देने वाला है।
जब धीरेंद्र शास्त्री ने यह बात कही, तो उनके स्वर में न विरोध था, न प्रशंसा का अतिरेक — बल्कि मातृभूमि के प्रति भावनात्मक समर्पण झलक रहा था। उनकी यह भावना हर उस भारतीय के हृदय को छूती है जो चाहता है कि भारत की राजनीति धर्म, न्याय और सत्य के मूल्यों पर आधारित रहे।
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धीरेंद्र शास्त्री का यह कथन आज की राजनीति और समाज दोनों के लिए दर्पण है । इन शब्दों में एक संत की तपस्या, एक देशभक्त का चेतावनी संदेश और एक नागरिक का कर्तव्य भाव छिपा है। आज जब समाज व्यक्ति पूजा और मतभेदों के दलदल में फँसता जा रहा है, तब यह कथन हमें याद दिलाता है कि भारत की असली ताकत उसकी आध्यात्मिक सोच में है — जहाँ व्यक्ति नहीं, सत्य और धर्म सर्वोपरि हैं।
संत और सत्ता का संबंध, सत्य की साधना ही असली राष्ट्रसेवा
धीरेंद्र शास्त्री का यह बयान केवल पीएम मोदी के लिए कही गई बात नहीं थी, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए एक सन्देश था — कि हर भारतीय को सत्ता की नहीं, सत्य की भक्ति करनी चाहिए। यही भारतीय संस्कृति का मूल है, यही सनातन धर्म की आत्मा है।
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