
RSS history: 01 अक्टूबर 2025 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया। 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने 100 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पूरी की, और इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष स्मारक डाक टिकट और 100 रुपये का सिक्का जारी किया। यह सिर्फ एक औपचारिक समारोह नहीं है, बल्कि 1 करोड़ से अधिक स्वयंसेवकों के तप, त्याग और निःस्वार्थ सेवा की प्रतिबिंबित मिसाल है।
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100 साल की सेवा और समर्पण की गाथा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 100 साल का सफर केवल संगठनात्मक यात्रा नहीं है। यह त्याग, अनुशासन और समाज सेवा का अद्भुत उदाहरण है। 1925 में डॉ. के.बी. हेडगेवार द्वारा स्थापित संघ ने समाज के हर क्षेत्र में अपने आदर्शों और मूल्यों को स्थापित किया।
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संघ की शाखाएं केवल बैठकें या संगठन का प्रतीक नहीं हैं। ये व्यक्ति निर्माण की कक्षाएं हैं, जहां न केवल शारीरिक और मानसिक अनुशासन सिखाया जाता है, बल्कि नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ भी दिया जाता है। प्रत्येक शाखा में बच्चों, युवाओं और युवतियों को समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठा का महत्व समझाया जाता है।

राष्ट्र निर्माण की यज्ञवेदी
संघ का कार्य सिर्फ व्यक्ति निर्माण तक सीमित नहीं रहा। यह राष्ट्र निर्माण का यज्ञवेदी भी रही है। देश के हर कोने में स्वयंसेवकों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में योगदान दिया है।
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चाहे वह प्राकृतिक आपदा में राहत कार्य हो, सामाजिक समानता के लिए अभियान हों या शिक्षा का प्रसार – संघ ने हर समय निःस्वार्थ सेवा और समर्पण का परिचय दिया। यही वजह है कि आज 1 करोड़ से अधिक स्वयंसेवक समाज के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं।
प्रधानमंत्री का संदेश: गर्व और प्रेरणा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शताब्दी समारोह में कहा कि संघ की 100 वर्षों की यात्रा हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने विशेष स्मारक डाक टिकट और 100 रुपये के सिक्के का विमोचन करते हुए कहा कि यह केवल एक सांकेतिक कार्य नहीं है, बल्कि राष्ट्र के प्रति सेवा और त्याग की भावना को मान्यता देने का अवसर है।
प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि संघ के आदर्श और मूल्य समाज में नए दृष्टिकोण और शक्ति का संचार करते हैं। उनके अनुसार, संघ की शाखाओं ने प्रत्येक स्वयंसेवक को राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी, अनुशासन और सेवा भाव सिखाया है।
स्वयंसेवकों का तप और सेवा भाव
संघ की ताकत उसके स्वयंसेवकों के तप, त्याग और सेवा भाव में निहित है। हर स्वयंसेवक अपने समय और प्रयास को समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित करता है।
- तप: स्वयं को अनुशासन और संयम के माध्यम से मजबूत बनाना।
- त्याग: व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के लिए काम करना।
- सेवा भाव: समाज के कमजोर वर्गों और जरूरतमंदों की मदद करना।
इस तीन स्तंभों ने संघ को केवल संगठन नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए अटल शक्ति बना दिया है।
डिजिटल और प्रत्यक्ष भागीदारी, हर भारतीय का गौरव
आज का शताब्दी समारोह केवल राष्ट्रीय राजधानी में नहीं हुआ। प्रत्यक्ष और डिजिटल माध्यम के जरिए पूरे देश के नागरिक भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बन सके।
संगीत, भाषण, स्मारक डाक टिकट और सिक्के का विमोचन, सब ने भारतीयों के मन में गर्व और गौरव की भावना जगाई। देश के कोने-कोने में लोग इस ऐतिहासिक पल को देख रहे थे और संघ की 100 वर्षीय यात्रा के महत्व को महसूस कर रहे थे।
समाज को नई दिशा देने वाला संघ
संघ का कार्य केवल अतीत की उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। आज भी यह समाज को नई दिशा और शक्ति प्रदान कर रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक समरसता और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में संघ ने हमेशा नवाचार और सक्रियता दिखाई है।
इसने यह साबित किया है कि संगठन का मूल उद्देश्य केवल संख्या बढ़ाना या शक्ति दिखाना नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा के माध्यम से स्थायी योगदान देना है।
100 साल की गौरवशाली यात्रा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्ष की यात्रा एक प्रेरक गाथा है – त्याग, अनुशासन, सेवा और राष्ट्रभक्ति की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा जारी किया गया विशेष डाक टिकट और 100 रुपये का सिक्का न केवल एक प्रतीक है, बल्कि समाज और राष्ट्र में संघ की अमूल्य भूमिका का सम्मान भी है।
आज हम सभी इस गौरवपूर्ण आयोजन का हिस्सा बनकर गर्व महसूस करते हैं। संघ का कार्य और उसकी शाखाएं प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। यह शताब्दी समारोह हमें याद दिलाता है कि समर्पण और निःस्वार्थ सेवा ही किसी राष्ट्र की सबसे बड़ी पूंजी होती है।
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