Durgapur rape case: पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से आई खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया है। एक मेडिकल छात्रा, जो ओडिशा की निवासी है, के साथ शुक्रवार शाम कॉलेज परिसर के बाहर कुछ दरिंदों ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं। इस घटना ने न सिर्फ पीड़िता के जीवन को अंधकार में ढक दिया, बल्कि समाज की संवेदनाओं को भी झकझोर दिया।
दुर्गापुर पुलिस ने मामले की जानकारी मिलते ही कार्रवाई शुरू की और अब तक तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि दो आरोपी अभी भी फरार हैं। लेकिन क्या केवल गिरफ्तारी ही न्याय है, जब प्रशासन ने इतनी देर से कदम उठाया? यह वही सवाल है जो देश के हर नागरिक के मन में उठ रहा है।
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दोस्त की भूमिका पर उठते सवाल
राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य अर्चना मजूमदार ने अस्पताल में पीड़िता से मिलने के बाद एक गंभीर दावा किया। उनका कहना था कि इस जघन्य अपराध में पीड़िता के दोस्त की भूमिका संदिग्ध है। मजूमदार ने कहा, “पीड़िता को कॉलेज से बाहर आने के लिए उसके दोस्त ने ही कहा था। वह भी अब पूछताछ के दायरे में है। प्रारंभिक साक्ष्य इस ओर इशारा कर रहे हैं कि दोस्त की भूमिका इस वारदात में अहम हो सकती है।”

पीड़िता के पिता भी इस मामले में आशंका जता चुके हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ही आरोपियों ने उनकी बेटी को घेर लिया, उसका दोस्त वहां से भाग गया। पिता की आँखों में डर साफ झलक रहा था, और उनका कहना था कि वे अपनी बेटी को सुरक्षा के लिए ओडिशा वापस ले जाना चाहते हैं।यहां हम यह समझ सकते हैं कि केवल आरोपी को पकड़ना पर्याप्त नहीं है। पीड़िता की सुरक्षा और मानसिक स्थिति की देखभाल भी प्राथमिकता होनी चाहिए।
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पुलिस और फोरेंसिक टीम की कार्रवाई
रविवार को दुर्गापुर पुलिस और फोरेंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंची। उन्होंने वहां से दस्तावेज, नमूने और अहम सबूत एकत्र किए। पुलिस ने कहा, “यह न सिर्फ ओडिशा की बेटी के साथ हुआ अत्याचार है, बल्कि पूरे देश के लिए शर्मनाक है।”
ओडिशा सरकार ने तुरंत पश्चिम बंगाल सरकार को पत्र लिखा और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद पीड़िता के परिवार से बात की। लेकिन प्रशासन की गति और गंभीरता पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। घटना के 36 घंटे बाद केवल तीन आरोपी गिरफ्तार हुए, जबकि दो अभी भी फरार हैं। यह देरी एक ओर प्रशासनिक कमजोरी को उजागर करती है।
ओडिशा टीम का दुर्गापुर दौरा और प्रशासनिक सहयोग की कमी
ओडिशा सरकार की एक टीम भी पीड़िता से मिलने के लिए दुर्गापुर पहुंची, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली। इसमें बालासोर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भी शामिल थे। तीन अधिकारी ओडिशा पंजीकरण संख्या वाले दो वाहनों में आए, लेकिन अस्पताल और कॉलेज प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिला।
सोवाना मोहंती, अध्यक्ष, ओडिशा राज्य महिला आयोग ने कहा, “यह प्रशासन की नाकामी है कि उन्हें सहयोग नहीं मिला। यह घटना केवल ओडिशा की बेटी की नहीं, बल्कि पूरे देश की महिला सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है।”
यहां यह कटाक्ष करना जरूरी है कि ममता बनर्जी का प्रशासन इन मामलों में बार-बार सुस्त पड़ता दिखाई देता है। चाहे कानून-व्यवस्था की स्थिति हो या महिला सुरक्षा का मामला, बंगाल में हर बार कार्रवाई में देरी ने सवाल खड़े किए हैं।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस जघन्य अपराध पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “यह घटना घृणित और दर्दनाक है। महिलाओं के खिलाफ ऐसी घटनाओं के लिए समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। मैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से निष्पक्ष जांच और त्वरित न्याय की मांग करता हूं।”
ओडिशा कांग्रेस अध्यक्ष भक्त चरण दास ने भी घटना की कड़ी निंदा की और निर्देश दिया कि उनकी महिला शाखा पीड़िता की मदद में सक्रिय भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि आरोपियों के खिलाफ तत्काल और कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
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सोवाना मोहंती ने साफ शब्दों में कहा, “आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से हो सकते हैं, लेकिन यह मुद्दा जाति या धर्म का नहीं, बल्कि न्याय और महिला सुरक्षा का है। बाकी दो आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी होनी चाहिए और सभी दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए।”
न्याय और सुरक्षा की मांग
दुर्गापुर की यह घटना केवल एक स्थानीय घटना नहीं है। यह पूरे देश के लिए चेतावनी है कि महिला सुरक्षा को लेकर प्रशासन की गंभीरता और तत्परता कितनी आवश्यक है। ओडिशा की बेटी के दर्द और पिता की चिंता हमें यह याद दिलाती है कि कानून-व्यवस्था की सुस्ती कितनी भयावह परिणाम दे सकती है।
ममता बनर्जी की सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि न केवल न्यायिक प्रक्रिया बल्कि पीड़िता की सुरक्षा और मानसिक स्थिति की भी प्राथमिकता हो। केवल राजनीतिक बयानबाजी से न्याय नहीं होता।
जैसा पुण्य प्रसुन वाजपेयी कहते, “समाज की आत्मा तब ही स्वस्थ रहती है जब वह अपने हर नागरिक, खासकर अपने बेटियों की सुरक्षा में तत्पर हो।” दुर्गापुर की घटना ने हमें यही सिखाया है कि हमें कानून और नैतिक जिम्मेदारी में देरी बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए।
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