Haridwar News: ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर निकाले जा रहे जुलूस के दौरान हरिद्वार जिले के गाजीवाली गांव में शनिवार को उस समय तनाव उत्पन्न हो गया, जब जुलूस संत प्रबोधानंद गिरि के आश्रम के समीप से गुजर रहा था। बताया जा रहा है कि आश्रम के निकट जुलूस निकालने को लेकर दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हो गई, जिससे माहौल कुछ समय के लिए तनावपूर्ण हो गया।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मुस्लिम समुदाय द्वारा निकाला जा रहा यह जुलूस बिना पूर्व अनुमति के निकाला गया था। जब जुलूस आश्रम के समीप पहुँचा, तो आश्रम के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और उन्हें रोकने की कोशिश की। इसी को लेकर दोनों पक्षों के बीच बहस शुरू हो गई, जो धीरे-धीरे उग्र होती चली गई।
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स्थिति की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय पुलिस को सूचना दी गई। मौके पर तुरंत श्यामपुर थाना पुलिस ने पहुंचकर दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर मामला शांत कराया। पुलिस की तत्परता से किसी भी प्रकार की हिंसा या अप्रिय घटना होने से बचाव हो गया। हालांकि, पुलिस के अनुसार, इस मामले में अभी तक किसी भी पक्ष ने औपचारिक रूप से कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई है।
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इस पूरे घटनाक्रम को लेकर संत प्रबोधानंद गिरि ने कड़ा बयान दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि आश्रम को बदनाम करने और धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ने की साजिश के तहत जानबूझकर जुलूस को उनके आश्रम के रास्ते से निकाला गया। उन्होंने कहा कि यह कृत्य न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है, बल्कि सामाजिक सद्भाव को भी बिगाड़ने की कोशिश है।
प्रबोधानंद गिरि ने प्रशासन से मांग की है कि बिना अनुमति निकाले गए इस जुलूस की जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। उन्होंने यह भी अपील की कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए प्रशासन को पहले से सतर्क रहना चाहिए।
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उधर, स्थानीय मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने सफाई देते हुए कहा कि यह जुलूस पारंपरिक मार्ग से ही निकाला गया था और किसी प्रकार की अशांति फैलाने का कोई इरादा नहीं था। उन्होंने बताया कि यह आयोजन हर साल इसी मार्ग से होता आया है।
फिलहाल क्षेत्र में स्थिति सामान्य है, लेकिन एहतियात के तौर पर पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। प्रशासन भी पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए है और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की गई है।
हरिद्वार जैसे धार्मिक शहर में ऐसे घटनाक्रम सामाजिक सौहार्द के लिए खतरे की घंटी हैं। सभी समुदायों को आपसी समझ और संवेदनशीलता के साथ ऐसे अवसरों पर संयम बनाए रखना चाहिए। वहीं, प्रशासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सभी धार्मिक आयोजनों की अनुमति और सुरक्षा व्यवस्था पहले से सुनिश्चित करे, ताकि किसी भी प्रकार की गलतफहमी या विवाद से बचा जा सके।
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