Chhath Puja: छठ महापर्व के पावन अवसर पर लखनऊ के एक घाट पर एक भावुक दृश्य देखने को मिला। जहां हजारों श्रद्धालु उगते सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचे थे, वहीं पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी के साथ इंसानियत का भी फर्ज निभाते दिखे। भीड़ के बीच एक मासूम बच्चे के रोने पर एक पुलिसकर्मी ने अपनी वर्दी की मर्यादा से ऊपर उठकर ममता की मिसाल पेश की उसने बच्चे को गोद में उठा लिया ताकि उसकी माँ शांति से पूजा संपन्न कर सके।
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त्योहार की भीड़ और सुरक्षा का जिम्मा
छठ पर्व के दौरान शहर के घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी। प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था के लिए पुलिस बल की तैनाती की थी। हर तरफ चेकिंग, बैरिकेडिंग और निगरानी की जिम्मेदारी पुलिसकर्मियों के कंधों पर थी। इसी भीड़ के बीच यह दृश्य देखने को मिला जिसने लोगों के दिलों को छू लिया।

खाकी में झलकी इंसानियत
एक महिला श्रद्धालु अपने छोटे बच्चे के साथ घाट पर पूजा कर रही थी। भीड़ और शोरगुल के बीच बच्चा अचानक रोने लगा। महिला असमंजस में थी कि पूजा जारी रखे या बच्चे को संभाले। तभी पास में ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मी ने आगे बढ़कर बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। उन्होंने माँ से कहा, ‘आप पूजा कीजिए, बच्चा मेरे पास सुरक्षित है।’ इस दृश्य को देखकर आस-पास मौजूद लोगों ने तालियां बजाईं। कई श्रद्धालुओं ने इस क्षण को अपने मोबाइल में कैद कर सोशल मीडिया पर साझा किया।
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लोगों ने कहा यह है असली सेवा
वीडियो और तस्वीरें वायरल होते ही लोगों ने इस पुलिसकर्मी की सराहना की। सोशल मीडिया पर कमेंट्स की बाढ़ आ गई। एक यूज़र ने लिखा, यह है असली भारत पुलिस जहां ड्यूटी के साथ इंसानियत भी जीवित है। दूसरे ने कहा, वर्दी में दिल भी होता है, बस कभी-कभी वो ऐसे मौके पर झलक जाता है।
छठ: आस्था, अनुशासन और संवेदना का संगम
छठ महापर्व सिर्फ पूजा या अनुष्ठान नहीं, बल्कि अनुशासन और संयम का पर्व माना जाता है। इस मौके पर पुलिस का यह व्यवहार इस पर्व की आत्मा से जुड़ा प्रतीत हुआ—जहां सेवा, त्याग और संवेदना एक साथ चलती हैं। खाकी वर्दी अक्सर सख्ती और अनुशासन का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन इस घटना ने यह साबित किया कि वही खाकी संवेदना की भी मिसाल बन सकती है।
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ममता और वर्दी का सुंदर संगम
त्योहारों में सुरक्षा व्यवस्था में जुटी पुलिस अक्सर पर्दे के पीछे रह जाती है। लेकिन लखनऊ के इस पुलिसकर्मी की यह तस्वीर याद दिलाती है कि इंसानियत हर वर्दी के भीतर बसती है। इस दृश्य ने न केवल पूजा करने वाली महिला का दिल जीता बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया खाकी सिर्फ अनुशासन नहीं, संवेदना की प्रतीक भी है।
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