Yogi Adityanath: मुस्तफाबाद का नाम बदलकर कबीरधाम रखने की घोषणा ने पूरे क्षेत्र में नई उम्मीद और उत्साह भर दिया है। यह सिर्फ़ नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि जनमानस की आस्था और भारत की संत परंपरा का सम्मान है। जगह का नाम उसकी पहचान और संस्कृति को दर्शाता है, और जब उस पहचान में संत कबीर जैसे महान विचारक का नाम जुड़ता है, तो यह निर्णय भारत की आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक बन जाता है।
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जनता की आस्था का सम्मान
बयान में कहा गया-
“जहां पर आम जनमानस की आस्था है, वहां पर हमने धनराशि उपलब्ध करवाने का काम किया है… लेकिन, इससे पहले यह पैसा कब्रिस्तान की बाउंड्री में जाता था।”
यह बात स्पष्ट करती है कि अब सरकार का फोकस जनभावना और धार्मिक आस्था से जुड़े स्थलों के विकास पर है। पहले जहां फंड का उपयोग सही दिशा में नहीं हो रहा था, वहीं अब इसे उन स्थानों पर लगाया जा रहा है जहां जनता की आत्मा बसती है।
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2014 से शुरू हुआ सांस्कृतिक पुनर्जागरण
“सौभाग्य से वर्ष 2014 में भारत माता के सपूत आदरणीय प्रधानमंत्री जी को देश का नेतृत्व मिला, देखते ही देखते भारत की तकदीर और तस्वीर बदलती हुई नजर आई है।”
यह पंक्ति अपने आप में उस परिवर्तन की कहानी कहती है, जब देश के नेतृत्व में एक नई दृष्टि और नई सोच आई। 2014 के बाद भारत ने न केवल विकास बल्कि संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिक एकता के क्षेत्र में भी असाधारण प्रगति की है।
कबीरधाम: एकता और सद्भाव का प्रतीक
‘कबीरधाम’ नाम अपने आप में सामाजिक समानता, भाईचारे और आध्यात्मिक एकता का दर्पण है। संत कबीरदास ने सिखाया था कि धर्म, जाति या पंथ से ऊपर मानवता है। इसलिए, यह नाम न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि समाज को जोड़ने वाला एक सांस्कृतिक संदेश भी देता है। आज के दौर में जहां विभाजन की राजनीति देखी जाती है, वहां “कबीरधाम” जैसा नाम एकता का प्रतीक बनकर उभरता है।
स्थानीय विकास और पहचान
नाम परिवर्तन का उद्देश्य केवल भावनात्मक जुड़ाव नहीं है, बल्कि यह स्थानीय विकास की दिशा में ठोस कदम है। ‘कबीरधाम’ बनने के बाद यहां पर्यटन, सांस्कृतिक आयोजन और धार्मिक यात्राओं का दायरा बढ़ेगा। इससे न केवल स्थानीय रोजगार के अवसर बनेंगे, बल्कि क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आएगा। सांस्कृतिक पहचान से जुड़ने पर समाज में गर्व और आत्मसम्मान की भावना बढ़ती है।
राजनीति नहीं, संस्कृति का प्रश्न
अक्सर नाम परिवर्तन को राजनीतिक दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन इस बार मामला अलग है। यह फैसला धार्मिक भावना और सामाजिक सुधार दोनों को जोड़ता है। “कबीरधाम” ऐसा नाम है जो हर धर्म, हर जाति और हर व्यक्ति को जोड़ने की क्षमता रखता है। यह उस भारत की पहचान है जो अपनी जड़ों को सम्मान देता है, लेकिन आधुनिकता की ओर भी तेजी से बढ़ता है।
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नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
‘कबीरधाम’ नई पीढ़ी को यह याद दिलाएगा कि भारत केवल भौगोलिक सीमाओं का देश नहीं, बल्कि संस्कृति और ज्ञान की भूमि है।
संत कबीर के दोहे, उनके विचार और जीवन दर्शन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं —
“माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे,
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।”
यह पंक्ति आज भी समाज को विनम्रता, समानता और सच्चाई की राह दिखाती है।
निष्कर्ष: आस्था से आत्मविश्वास की ओर
मुस्तफाबाद का कबीरधाम बनना केवल नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मा का पुनर्जागरण है। यह बदलाव हमें याद दिलाता है कि भारत की ताकत उसकी आस्था, संस्कृति और एकता में निहित है। जब सरकार, समाज और जनता एक ही दिशा में सोचते हैं — तो विकास सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि भावनाओं और संस्कारों में भी दिखाई देता है।
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