हिमालय की गोद में फिर गूंजा पर्यावरण चेतना का स्वर
उत्तराखंड के चमोली ज़िले का रैणी गांव शनिवार को एक बार फिर इतिहास दोहरा रहा था। इसी गांव में 1974 में शुरू हुआ चिपको आंदोलन आज भी दुनिया भर के पर्यावरण आंदोलनों की प्रेरणा है। दिवंगत गौरा देवी की 100वीं जयंती पर आयोजित समारोह में गांव और आस-पास के क्षेत्रों के लोगों ने “वन बचाओ, जीवन बचाओ” का संदेश फिर से बुलंद किया। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और वन विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम ने न केवल उस आंदोलन की याद दिलाई जिसने जंगलों को बचाया, बल्कि नई पीढ़ी को भी प्रकृति के प्रति ज़िम्मेदारी निभाने का आह्वान किया।
गौरा देवी: साहस और चेतना की मिसाल
1974 में जब पेड़ों की कटाई का खतरा मंडरा रहा था, तब गौरा देवी ने रैणी गांव की महिलाओं को संगठित कर पेड़ों से लिपटकर ठेकेदारों को रोक दिया था। यह वही क्षण था जब चिपको आंदोलन ने जन्म लिया एक ऐसा आंदोलन जिसने पूरे विश्व को सिखाया कि पर्यावरण की रक्षा जनभागीदारी से ही संभव है। उनकी जन्म शताब्दी पर यह आयोजन एक श्रद्धांजलि थी उस महिला को जिसने “प्रकृति” को “माँ” के रूप में देखा और उसके संरक्षण को जीवन का धर्म माना।
डाक विभाग ने दिया विशेष सम्मान
कार्यक्रम में भारतीय डाक विभाग ने गौरा देवी की याद में ‘Customized My Stamp’ और ‘Special Cover’ जारी किया।
यह कदम उनके योगदान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास है। समारोह में जब गौरा देवी की तस्वीर मंच पर प्रदर्शित की गई और उनके जीवन की कहानियां सुनाई गईं, तो उपस्थित लोगों की आंखें नम हो उठीं।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने दिल छू लिया
महिला मंगल दलों ने पारंपरिक गीतों, नृत्यों और नाट्य प्रस्तुतियों के माध्यम से उस दौर की जीवंत झलक पेश की, जब रैणी गांव की महिलाएं जंगलों की रक्षा के लिए पेड़ों से लिपट गई थीं। बच्चों की आवाज़ में गूंजता गीत — “हम हैं पेड़ों की रखवाली” — पूरे वातावरण को भावनात्मक बना गया।
गौरा देवी के पुत्र की भावुक यादें
कार्यक्रम में गौरा देवी के पुत्र चंद्र सिंह राणा ने कहा, “माँ ने हमें सिखाया कि प्रकृति हमारी जननी है। जिस तरह वह हमें जीवन देती है, वैसे ही उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।” उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और जंगलों की कटाई के इस युग में गौरा देवी जैसी महिलाओं का साहस आज भी हमारे लिए प्रेरणा है।
सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी
मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा, “गौरा देवी ने साबित किया कि साधारण व्यक्ति भी असाधारण परिवर्तन ला सकता है। उन्होंने जंगलों के साथ-साथ देश को चेताया कि विकास तभी सार्थक है जब वह पर्यावरण के साथ हो।” उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर पारंपरिक ज्ञान आधारित संरक्षण को बढ़ावा दे रही है।
वन विभाग की नई पहल और भविष्य की दिशा
प्रमुख वन संरक्षक रंजन कुमार मिश्र ने बताया कि नंदा देवी क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने और पर्यावरणीय संतुलन के लिए स्थानीय भागीदारी को सशक्त किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वन विभाग ग्रामीणों के साथ मिलकर एक “सहभागिता मॉडल” विकसित कर रहा है ताकि जंगलों और जीवों दोनों की रक्षा सुनिश्चित हो सके।
‘वन बचाओ, जीवन बचाओ’ एक गूंज जो आज भी जीवित है
समारोह के अंत में सभी उपस्थित लोगों ने एक स्वर में नारा लगाया
‘वन बचाओ, जीवन बचाओ!‘
यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि वह चेतना है जो 50 वर्ष पहले गौरा देवी की आवाज़ से निकली थी और आज भी हिमालय की वादियों में गूंजती है। रैणी गांव का सूरज ढलते वक्त यह संदेश पीछे छोड़ गया ‘प्रकृति की रक्षा ही मानवता की सबसे बड़ी सेवा है।”
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