Uttarakhand education crisis: ये कहानी सिर्फ एक राज्य की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो शिक्षा को “प्राथमिकता” कहती जरूर है, पर ज़मीन पर छोड़ देती है “प्रतीक्षा” के भरोसे। उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की नींव दरक चुकी है। भवन जर्जर हैं, संसाधन नाम मात्र के, और अब शिक्षक भी थक चुके हैं — प्रशासनिक आदेशों और अधूरे वादों के बोझ तले।
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शिक्षक या सर्वगुण संपन्न नौकर?
राज्य के स्कूलों में आज हाल यह है कि एक ही शिक्षक “प्रधानाचार्य” भी है, “क्लर्क” भी और “चपरासी” भी। कहीं घंटी बजाने का काम, तो कहीं रिकॉर्ड तैयार करने की जिम्मेदारी — और बीच में किसी तरह बच्चों को पढ़ाने का समय निकालना। ये वही शिक्षक हैं जो कभी बच्चों को “गुरु गोविंद दोउ खड़े” का अर्थ सिखाते थे, लेकिन अब अपने ही अधिकार के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।
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90% स्कूल बिना मुखिया — शिक्षा बिना दिशा
राजकीय शिक्षक संघ के आंकड़े चौंकाने वाले हैं – गढ़वाल मंडल के 1,311 सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में से 1,265 में प्रधानाचार्य नहीं हैं।
देहरादून, टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग — हर जिले में वही कहानी, वही खाली कुर्सियां। कुमाऊं में तस्वीर और भी गहरी है —
अल्मोड़ा में 258, पिथौरागढ़ में 209, नैनीताल में 150 और बागेश्वर में 89 विद्यालय ऐसे हैं जहाँ मुखिया ही नहीं। चंपावत और उधम सिंह नगर के स्कूल भी उसी कतार में खड़े हैं। कुल मिलाकर, राज्य के 90% से अधिक विद्यालय बिना स्थायी प्रधानाचार्य के चल रहे हैं।
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15 साल प्रभारी रहा, प्रमोशन अब भी लंबित
35 वर्षों से अध्यापन कर रहे एस.एस. दानू की आवाज़ में दर्द है—
“15 साल से प्रभारी प्रधानाचार्य के रूप में काम कर रहा हूँ, लेकिन आज तक स्थायी पदोन्नति नहीं मिली। हर साल एसीआर भरते हैं, पर सुनवाई नहीं होती।”
ये सिर्फ एक शिक्षक की नहीं, हजारों की कहानी है।
प्रमोशन की फाइलें विभागीय गलियारों में धूल खा रही हैं और शिक्षक उम्मीद खोते जा रहे हैं।
क्लर्क नहीं, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं — तो कौन संभाले स्कूल?
देहरादून में 59 क्लर्क और 97 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पद रिक्त हैं।
टिहरी में 94 लिपिक और 342 चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी नहीं।
पौड़ी में 72 क्लर्क और 317 चतुर्थ श्रेणी के पद खाली पड़े हैं।
कुमाऊं में हालात और भयावह —
अल्मोड़ा में 107 क्लर्क, 556 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं।
पिथौरागढ़ में 130 लिपिक और 427 चतुर्थ श्रेणी के पद रिक्त हैं।
ऐसे में शिक्षा कौन देगा और व्यवस्था कौन चलाएगा?
“शिक्षक हूं, पर घंटी भी मुझे ही बजानी पड़ती है”
26 साल से पढ़ा रहे कुलदीप कंडारी कहते हैं —
“विद्यालय में घंटी बजाने से लेकर रिकॉर्ड तैयार करने तक सब मुझे ही करना पड़ता है। ऐसे में बच्चों पर पूरा ध्यान कैसे दूं?”
उनकी बातों में व्यवस्था की विफलता झलकती है —
जहां शिक्षक प्रशासनिक बोझ ढो रहा है और छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित है।
शिक्षक संघ की चेतावनी — “अब अदालत का दरवाज़ा खटखटाएंगे”
राजकीय शिक्षक संघ अब सरकार से उम्मीद छोड़ चुका है।
संघ का कहना है कि अगर हर साल प्रमोशन प्रक्रिया समय पर होती, तो आज 90% स्कूल मुखिया विहीन न होते।
“अफसर फाइलों में सुधार दिखा रहे हैं, ज़मीन पर कुछ नहीं बदलता।”
अब शिक्षक संघ न्यायालय जाने की तैयारी में है।
अभिभावकों का सवाल — “बच्चों का भविष्य कौन संभालेगा?”
देहरादून निवासी धन सिंह की चिंता सीधी है—
“जब शिक्षक पर इतना बोझ होगा, तो बच्चों को कौन पढ़ाएगा? सरकार को तुरंत निर्णय लेना चाहिए।”
दरअसल, ये सवाल हर उस माता-पिता का है जो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजते हैं — उम्मीद के साथ, और लौटते हैं चिंता के साथ।
मुख्यमंत्री का आश्वासन- “संवाद जारी रहेगा”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं —
“सरकार शिक्षकों के साथ संवाद बनाए रखेगी। उनकी सभी उचित मांगों पर विचार किया जा रहा है।”
लेकिन सवाल ये है —
कब तक संवाद के नाम पर शिक्षक इंतज़ार करते रहेंगे?
कब तक शिक्षा का यह पहाड़ “प्रण” के भरोसे खड़ा रहेगा?
📊 उत्तराखंड सरकारी स्कूलों में प्रधानाचार्य, क्लर्क और चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों की स्थिति
(यह तालिका सुत्रों के मुताबिक बनाई गई सुधार की गुंजाइस हो सकती है)
| मंडल / जिला | कुल विद्यालय (सरकारी माध्यमिक) | प्रधानाचार्य रिक्त पद | क्लर्क रिक्त पद | चतुर्थ श्रेणी रिक्त पद |
|---|---|---|---|---|
| गढ़वाल मंडल | 1,311 | 1,265 | — | — |
| ➤ देहरादून | — | 264 | 59 | 97 |
| ➤ टिहरी | — | 268 | 94 | 342 |
| ➤ पौड़ी | — | 248 | 72 | 317 |
| ➤ उत्तरकाशी | — | 120 | — | — |
| ➤ चमोली | — | — | — | — |
| ➤ रुद्रप्रयाग | — | — | — | — |
| कुमाऊं मंडल | — | — | — | — |
| ➤ अल्मोड़ा | — | 258 | 107 | 556 |
| ➤ पिथौरागढ़ | — | 209 | 130 | 427 |
| ➤ नैनीताल | — | 150 | 62 | 224 |
| ➤ बागेश्वर | — | 89 | — | — |
| ➤ चंपावत | — | 102 | — | — |
| ➤ उधम सिंह नगर | — | 93 | — | — |
अंत में…
उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था आज एक चौराहे पर खड़ी है। जहां शिक्षक संघर्ष कर रहा है, छात्र असमंजस में है, और सरकार अब भी समाधान खोज रही है। जब तक हर स्कूल को उसका “मुखिया” नहीं मिलता, और हर शिक्षक को उसका “अधिकार” नहीं -तब तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सिर्फ एक भाषण का हिस्सा बनी रहेगी।
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