Italy jihad crackdown: इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के हालिया फैसले ने यूरोप की राजनीति में एक नया भूचाल ला दिया है। घोषणा साफ है। अब इटली में कोई नई मस्जिद नहीं बनेगी। मस्जिद बनेगी भी तो यह तय करेगी इटली सरकार कि इमाम कौन होगा और तकरीर किस भाषा में होगी। और यहाँ तक कि तकरीरें इटालियन भाषा में होंगी, ताकि देश की जनता समझ सके कि मज़हबी मंच से आखिर बोला क्या जा रहा है।
दरअसल, मेलोनी का यह कदम केवल धार्मिक संस्थानों को नियंत्रित करने भर का प्रयास नहीं है, बल्कि यह यूरोप में लगातार बढ़ रहे इस्लामी कट्टरवाद और जिहादी ताकतों पर सीधा प्रहार है। यूरोप की धरती पर पिछले दो दशकों में आतंक की जितनी परछाइयाँ फैलीं, उनमें अधिकांश इस्लामिक जिहादी मानसिकता से ही उपजी थीं। पेरिस हो या ब्रसेल्स, बर्लिन हो या रोम – हर जगह सवाल यही रहा कि मेज़बान देश की संस्कृति पर बाहरी कट्टरपंथी मानसिकता क्यों भारी पड़ रही है?
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मेलोनी का राष्ट्रवाद बनाम इस्लामी कट्टरवाद
जॉर्जिया मेलोनी का नाम भले ही पश्चिमी मीडिया “अति-दक्षिणपंथी” के तौर पर प्रचारित करे, लेकिन उनके कदमों की जड़ें कहीं गहरी हैं। वे बार-बार यह दोहराती रही हैं कि “इटली इटालियनों का है, न कि अवैध प्रवासियों का”। यही सोच अब नीतियों में उतरती दिख रही है।
मिनिमम वेज पॉलिसी खत्म करने का फैसला भी इसी का हिस्सा है। उनका तर्क सीधा है – इटालियन टैक्सपेयर्स की गाढ़ी कमाई क्यों बांग्लादेशी, लीबियाई या सीरियाई प्रवासियों की मौज पर खर्च हो? जिस व्यवस्था के तहत विदेशी मजदूरों को न्यूनतम वेतन की गारंटी मिलती थी, उसे अब समाप्त करने का ऐलान करके मेलोनी ने यह संदेश दिया है कि इटली में अब मेज़बानों की नहीं, बल्कि मेहमानों की जिम्मेदारी खुद उन्हीं पर होगी।

“इटली कोई बच्चा पालने वाली मशीन नहीं है”
सबसे ज्यादा चर्चा जिस फैसले की हो रही है, वह है बच्चों पर मिलने वाली सब्सिडी। अब तक इटली में प्रति बच्चे पर 700 यूरो की सरकारी मदद दी जाती थी। लेकिन मेलोनी ने इसे बंद करने का एलान करते हुए साफ कहा – “इटली कोई बच्चा पालने वाला देश नहीं कि आप 10-12 बच्चे पैदा करें और हमारे टैक्स के पैसों पर जीवन गुजारें।”
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यह बयान सीधा-सीधा यूरोप में फैली उस मानसिकता पर प्रहार है जहां प्रवासी परिवार बड़े पैमाने पर संतानोत्पत्ति कर रहे हैं और स्थानीय नागरिकों पर टैक्स का बोझ डाल रहे हैं। मेलोनी का यह संदेश साफ है – अगर आप इटली में रहना चाहते हैं, तो यहां के नियमों और संस्कृति का पालन करना होगा।
बेरोजगारी भत्ता भी खत्म
यही नहीं, मेलोनी बेरोजगारी भत्ता भी समाप्त करने जा रही हैं। उनका कहना है कि इसने कामचोरी और परजीवी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। जो लोग मेहनत नहीं करना चाहते, वे सरकारी पैसे पर जीने की आदत डाल चुके हैं।
दरअसल, यह मॉडल पश्चिमी देशों में लंबे समय से चला आ रहा है कि राज्य अपने नागरिकों या प्रवासियों को “सोशल सिक्योरिटी नेट” देता है। लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था काम करने की बजाय आराम करने का लाइसेंस बन गई। मेलोनी अब इसे पूरी तरह बदलना चाहती हैं।
हिंदुत्व और मेलोनी की राजनीति का सेतु
अब सवाल यह है कि इस पूरे घटनाक्रम का हिंदुत्व से क्या लेना-देना? जवाब बड़ा सीधा है।
भारत में भी पिछले कुछ सालों से यह बहस तेज़ रही है कि कौन इस देश का असली मालिक है और कौन मेहमान।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं “भारत बिना भेदभाव सबका है, लेकिन कानून सबके लिए समान होगा”, तो उसका सीधा मतलब यही है कि किसी भी समुदाय को अपनी धार्मिक पहचान के नाम पर देश के नियमों से ऊपर नहीं रखा जाएगा।
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जैसे भारत में कॉमन सिविल कोड पर चर्चा है, वैसे ही इटली में मस्जिदों पर नियंत्रण की नीति लागू की जा रही है। यह संदेश एक जैसा है – धर्म निजी है, लेकिन जब धर्म सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करता है, तो राज्य का दखल जरूरी हो जाता है।
हिंदुत्व का मूल दर्शन भी यही कहता है कि राष्ट्र ही सर्वोपरि है। कोई भी संप्रदाय, जाति या पंथ राष्ट्र से बड़ा नहीं हो सकता। मेलोनी के फैसले इसी सोच की ओर इशारा करते हैं।
यूरोप में बदलता समीकरण
पश्चिमी देशों की राजनीति लंबे समय तक “उदारवाद” और “मानवाधिकार” की बात करती रही। परिणाम यह हुआ कि वहां इस्लामी कट्टरपंथ ने गहरी पैठ बना ली। फ्रांस के चर्चों पर हमले हों या इंग्लैंड की सड़कों पर जिहादी हमले – हर जगह सवाल यही रहा कि उदारवाद की कीमत आखिर कितनी भारी है?
मेलोनी अब उस सोच को बदल रही हैं। और यही कारण है कि वे केवल इटली में नहीं, बल्कि पूरे यूरोप में एक नई लहर की प्रतीक बन चुकी हैं।
भारत के लिए सीख
भारत में भी कई बार सवाल उठते हैं कि मंदिरों का प्रबंधन सरकार करे तो मस्जिदों और गिरजाघरों का क्यों नहीं? जब कांवड़ यात्रा में लाउडस्पीकर की आवाज़ नियंत्रित की जाती है तो मस्जिदों के लाउडस्पीकर क्यों खुले छोड़ दिए जाएं?
मेलोनी की नई नीति भारतीय बहसों को भी आईना दिखाती है। अगर इटली जैसे देश मस्जिदों में तकरीर की भाषा तय कर सकते हैं ताकि आम जनता समझ सके कि वहां क्या चल रहा है, तो भारत में भी पारदर्शिता की मांग क्यों गलत है?
वैश्विक राजनीति में हिंदुत्व की गूंज
आज हिंदुत्व केवल भारत की विचारधारा नहीं रहा। जब मेलोनी जैसी नेता कहती हैं कि राष्ट्र पहले है, जब वे मजहबी कट्टरपंथ पर लगाम कसती हैं, तो यह दरअसल उसी विचारधारा की गूंज है जो “वसुधैव कुटुंबकम्” के साथ-साथ “धर्मो रक्षति रक्षितः” का संदेश देती है।
हिंदुत्व कहता है – धर्म का पालन करो, लेकिन राष्ट्र को सर्वोपरि रखो। मेलोनी भी यही कर रही हैं।
इटली में मेलोनी के फैसले केवल आर्थिक या प्रशासनिक सुधार नहीं हैं। यह दरअसल एक सभ्यतागत टकराव का हिस्सा हैं। पश्चिमी समाज अब तय कर रहा है कि वह अपनी जमीन पर किसे कितनी जगह देगा।हिंदुत्व के संदर्भ में देखें तो यह वही संघर्ष है जिसे भारत सदियों से झेलता आया है।
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सभ्यता बनाम कट्टरवाद।
आज इटली ने जिहादियों को करारा झटका दिया है। कल शायद और देश इसी राह पर चलें।
और भारत के लिए यह संदेश है – अगर इटली अपनी सभ्यता बचाने के लिए कठोर कदम उठा सकता है, तो हमें भी अपनी सनातनी विरासत की रक्षा के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी।
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