Meerut News Update: मेरठ के शास्त्री नगर सेंट्रल मार्केट में स्थित ध्वस्त कॉम्प्लेक्स के सामने आज माहौल बेहद गरम रहा। धरने पर बैठी 22 दुकानदार महिलाओं ने भाजपा सांसद अरुण गोविल और स्थानीय भाजपा नेता विनीत शारदा के खिलाफ जमकर नाराज़गी जाहिर की। महिलाओं ने कहा — ‘हमारी बर्बादी पर लड्डू बांटने वाले हमें दोस्ती का दिखावा न करें।’

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दुकानदारों का आक्रोश – ‘हम तबाह हुए, वो जश्न मना रहे थे’
धरने पर बैठी दुकानदार सरोज देवी, ममता अग्रवाल, और रीना शर्मा ने कहा कि जिस दिन हमारा कॉम्प्लेक्स ढहाया गया, उसी दिन सांसद अरुण गोविल ने अपने समर्थकों संग लड्डू बांटे और पटाखे छोड़े। महिलाओं का सवाल था — “क्या हमारी तबाही खुशी का मौका थी? क्या यही जनता की सेवा है?” एक महिला ने कहा, ‘हमने रामायण में देखा था कि भगवान राम दुख में साथ देते हैं, लेकिन उनके रूप में संसद पहुंचे व्यक्ति ने तो हमारी तबाही का उत्सव मना लिया। क्या यही रामभक्तों की संस्कृति है?’
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‘हाथ जोड़कर आये, पर जवाब नहीं दे पाए’
भाजपा नेता विनीत शारदा जब हालात संभालने पहुंचे, तो महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। धरने पर बैठी महिलाएं तंज कसते हुए बोलीं — “अब हाथ जोड़ने से क्या होगा, जब हाथों से हमारी रोज़ी-रोटी छीन ली गई।” महिलाओं ने आरोप लगाया कि शारदा सिर्फ फोटो खिंचवाने आए थे, असली समस्या सुनने कोई नहीं तैयार है। भीड़ में मौजूद कुछ लोगों ने कहा कि भाजपा नेताओं की संवेदनशीलता “शब्दों तक सीमित” रह गई है।
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प्रशासन और राजनीति के बीच फंसे रोज़गार
दुकानदारों का कहना है कि नगर निगम और विकास प्राधिकरण की कार्रवाई ने उनकी सालों की मेहनत पर पानी फेर दिया। कई दुकानें 30-40 साल पुरानी थीं, जिनसे पूरे परिवारों का गुज़ारा चलता था। अब हालात ऐसे हैं कि महिलाएं सड़क पर धरना देकर न्याय मांग रही हैं, जबकि नेता एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। एक स्थानीय व्यापारी ने कहा, “अगर कोई अवैध निर्माण था तो वैकल्पिक व्यवस्था दी जाती। लेकिन यहां तो लोकतंत्र के नाम पर बेरहमी की गई है।”
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जनता का सवाल – “सहानुभूति सिर्फ मंचों पर क्यों?”
शहर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस घटना को लेकर भाजपा नेताओं की निंदा की है। उनका कहना है कि जनता के दुख-दर्द में राजनीतिक संवेदना और नैतिकता दोनों गायब होती जा रही है।“नेता कैमरे के सामने हाथ जोड़ते हैं, लेकिन ज़मीन पर लोगों के आँसू कोई नहीं पोंछता,” एक कार्यकर्ता ने कहा। शास्त्री नगर की यह घटना सिर्फ दुकानदारों की नहीं, बल्कि उस संवेदनहीन राजनीति की तस्वीर है जहाँ लोगों के दर्द पर भी जश्न मनाया जाता है।महिलाओं की आवाज़ अब नारा बन गई है —
‘हमें नहीं चाहिए ऐसी मित्रता, जो हमारी बर्बादी पर खुश हो!‘
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